नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) प्रॉक्सी सलाहकार फर्म इनगवर्न ने अपनी एक रिपोर्ट में कुछ विदेशी शॉर्ट-सेलिंग फर्मों की कार्यप्रणाली का विवरण दिया है जो लक्षित कंपनियों में पोजिशन लेना शुरू करती हैं और संबंधित रिपोर्ट आने के बाद उनके शेयरों की कीमतों में आई गिरावट से लाभ कमाती हैं।
इनगवर्न ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘सेबी के साथ पंजीकृत नहीं होने वाली विदेशी शोध इकाइयां भारतीय नियामकीय जांच का विषय बने बगैर भारतीय कंपनियों पर रिपोर्ट प्रकाशित कर सकती हैं। ऐसा उस समय भी हो सकता है जब उनके कार्यों का भारतीय निवेशकों और बाजारों पर सीधा प्रभाव पड़ता हो।’’
यह रिपोर्ट अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलिंग फर्म वायसराय रिसर्च की तरफ से हाल ही में अरबपति अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाली कंपनी वेदांता रिसोर्सेज पर आई एक रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में आई है। वायसराय रिसर्च ने वेदांता रिसोर्सेज को ‘परजीवी’ बताते हुए कहा था कि वह अपनी भारतीय इकाई वेदांता लिमिटेड को ‘व्यवस्थित रूप से खत्म’ कर रही है।
हालांकि वेदांता समूह ने इस आरोप को ‘चुनिंदा भ्रामक सूचना पर आधारित और आधारहीन’ बताते हुए सिरे से नकार दिया था। उसने कहा कि इस रिपोर्ट का मकसद समूह को बदनाम करना है।
शॉर्ट सेलिंग फर्म वे वित्तीय संस्थाएं हैं जो शेयरों (या अन्य संपत्तियों) की कीमतों में गिरावट से लाभ कमाने में माहिर होती हैं। वे अक्सर गहन शोध और कभी-कभी सार्वजनिक रिपोर्ट जारी कर ऐसा करती हैं।
इनगवर्न ने कहा कि शॉर्ट सेलिंग फर्मों की रिपोर्ट आज के बाजार में अहम घटनाएं हो गई हैं। इनके जारी होने से अक्सर अस्थिरता बढ़ जाती है और लक्षित कंपनियों की गहन जांच होने लगती है।
ये फर्म पहले किसी कंपनी के शेयरों में शॉर्ट पोजिशन लेती हैं और फिर उसके खिलाफ आलोचनात्मक या प्रतिकूल शोध रिपोर्ट प्रकाशित करती हैं। यह रिपोर्ट अक्सर बाजार में प्रतिक्रियाएं पैदा करती है और कभी-कभी स्थिति घबराहट की हद तक पहुंच जाती है।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शोध विश्लेषकों के लिए एक नियामकीय ढांचा स्थापित किया है। भारतीय प्रतिभूतियों पर शोध प्रकाशित करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों का नियामक के पास पंजीकरण जरूरी है जिससे जवाबदेही और निगरानी सुनिश्चित होती है।
इनगवर्न ने कहा, ‘‘ये नियम निवेशकों के हितों की रक्षा करने और पंजीकृत विश्लेषकों को पेशेवर और नैतिक मानकों पर रखकर बाज़ार की अखंडता को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं।’’
इसके पहले जनवरी, 2023 में भी अदाणी समूह के खिलाफ एक अमेरिकी शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिकूल रिपोर्ट जारी की थी। शेयरों के भाव में हेराफेरी और वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों को समूह ने सिरे से नकार दिया था लेकिन उसकी कंपनियों के बाजार मूल्य में भारी गिरावट आई थी।
अब अपना कारोबार समेट चुकी हिंडनबर्ग रिसर्च ने इस संदर्भ में सेबी की तरफ से भेजे गए समन का जवाब नहीं दिया था।
इनगवर्न ने भारतीय समूहों के खिलाफ आई हालिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि विदेशी शोध फर्मों ने प्रतिभूतियों में आर्थिक हित रखते हुए आलोचनात्मक रिपोर्ट जारी कीं और नियामकीय समन का जवाब भी नहीं दिया।
प्रॉक्सी फर्म ने कहा, ‘‘भारतीय नियामक घरेलू शोध विश्लेषकों के बीच अनुपालन और जवाबदेही लागू कर सकते हैं, लेकिन गैर-विनियमित विदेशी इकाइयों के खिलाफ उनके पास सीमित उपाय हैं। इस नियामकीय अंतराल से ऐसी फर्मों को पारदर्शिता के समान मानकों का पालन किए बिना भारतीय बाजारों को प्रभावित करने का मौका मिल जाता है।’’
इनगवर्न ने कहा, ‘‘इन रिपोर्ट की सटीकता अक्सर बहस का मुद्दा होती है लेकिन प्रोत्साहन संरचना इसके उद्देश्यों के बारे में चिंताएं पैदा करती है।’’
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