नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) सरकार ने ताप विद्युत संयंत्रों (टीपीपी) के लिए सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) उत्सर्जन संबंधी मानदंडों में ढील दिए जाने के अपने हालिया कदम का बचाव करते हुए सोमवार को कहा कि यह निर्णय विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन एवं हितधारकों के परामर्श पर आधारित था और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट ने इसे ‘‘नियमों को कमजोर करने’’ का कदम बताकर अधिसूचना की ‘‘गलत व्याख्या’’ की है।
मंत्रालय ने 11 जुलाई की अधिसूचना में मानंदडों में ढील के जरिये बड़ी संख्या में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को छूट दी।
पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किलोमीटर के भीतर या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए एसओ2 अनुपालन की समय सीमा को दिसंबर 2024 से दिसंबर 2027 तक बढ़ा दिया है।
मंत्रालय की इस अधिसूचना के कुछ दिन बाद जारी बयान में कहा गया, ‘‘विभिन्न मीडिया रिपोर्ट में संशोधित अधिसूचना के अंतर्निहित वैज्ञानिक साक्ष्यों और पर्यावरण नीति संबंधी तर्कों को गलत तरीके से पेश किया गया है।’’
इसमें कहा गया कि संशोधित मानदंड ‘‘देश भर में 537 टीपीपी में एसओ2 उत्सर्जन मानकों के पीछे प्रभावशीलता एवं तर्क और क्षेत्र के समग्र परिवेशी वायु प्रदूषण में इसकी भूमिका को लेकर हितधारकों और अनुसंधान संस्थानों के साथ व्यापक परामर्श के बाद तैयार किए गए।’’
बयान में कहा गया, ‘‘ये मानदंड विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित हैं जो आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) दिल्ली, राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों के साथ-साथ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की घटक प्रयोगशाला ‘राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान’ द्वारा किए गए थे। इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वैज्ञानिक परीक्षण भी किया गया था।’’
श्रेणी सी संयंत्रों के लिए समय-सीमा को वापस लेने और छूट को लेकर हो रही आलोचना का जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा, ‘‘मीडिया रिपोर्ट संशोधित अधिसूचना के अंतर्निहित वैज्ञानिक साक्ष्य और पर्यावरणीय नीति संबंधी तर्क को गलत तरीके से प्रस्तुत करती हैं।’’
मंत्रालय ने कहा, ‘‘नियामकीय कमजोरियों के दावों के विपरीत मंत्रालय का निर्णय वर्तमान वायु गुणवत्ता आंकड़ों, क्षेत्रीय उत्सर्जन की प्रवृत्तियों और व्यापक स्थिरता संबंधी अनिवार्यताओं पर आधारित तर्कसंगत, साक्ष्य के आधार पर पुनर्संयोजन को दर्शाता है।’’
मंत्रालय ने इस बात को भी वैज्ञानिक रूप से निराधार बताकर खारिज कर दिया कि एसओ2 के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) पुराने हो चुके हैं। इन्हें इससे पहले 2009 में संशोधित किया गया था।
उसने कहा, ‘‘वास्तव में, एसओ2 मानकों में कोई भी संशोधन पीएम2.5 के स्तर में इसके वास्तविक योगदान और इससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए, न कि केवल बयानबाजी के आधार पर।’’
सल्फर डाइऑक्साइड एक प्रमुख वायु प्रदूषक है, जो सूक्ष्म कण पदार्थ ‘पीएम2.5’ में परिवर्तित हो जाता है और कई प्रकार की बीमारियों का कारण बनता है।
बयान में कहा गया है, ‘‘मौजूदा जोखिम स्तर इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं देते कि वर्तमान परिवेश में एसओ2 जन स्वास्थ्य के लिए चिंता का प्रमुख विषय है। इसके अलावा, एसओ2 से बनने वाले सल्फेट एरोसोल पीएम2.5 का एक अपेक्षाकृत छोटा अंश होते हैं।’’
भाषा
सिम्मी संतोष
संतोष