नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया कि किसी कंपनी को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पीड़ित कहा जा सकता है और वह बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) उल्लंघन सहित आपराधिक मामलों में किसी को बरी किये जाने के आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकती है।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने एशियन पेंट्स की याचिका स्वीकार कर ली और राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया जिसने राम बाबू नामक व्यक्ति को बरी करने के खिलाफ दायर कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी। राम बाबू कंपनी के ब्रांड के नाम से कथित तौर पर नकली पेंट उत्पाद बेचते हुए पाया गया था।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने फैसले में कहा, ‘‘यहां एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठाया गया है कि क्या अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 2(डब्ल्यूए) (धारा 372 के प्रावधान के साथ पढ़ा जाए) के संदर्भ में ‘पीड़ित’ की परिभाषा के अंतर्गत आएगा या क्या वर्तमान मामले में सीआरपीसी की धारा 378 लागू होगी।’’
फैसले में कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन से प्रभावित कॉरपोरेट संस्थाएं पीड़ित के रूप में आपराधिक कार्यवाही का विकल्प चुन सकती है।
पेंट निर्माण में 73 साल से अग्रणी कंपनी एशियन पेंट्स ने जालसाजों पर नजर रखने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ‘आईपीआर’ परामर्श कंपनी ‘मेसर्स सॉल्यूशन’ को नियुक्त किया है।
‘मेसर्स सॉल्यूशन’ को फरवरी 2016 में राजस्थान के तुंगा स्थित ‘गणपति ट्रेडर्स’ की दुकान पर एशियन पेंट्स से मिलते ट्रेडमार्क वाले नकली उत्पाद मिले। यह दुकान आरोपी राम बाबू की थी। पुलिस जांच के बाद कथित तौर पर नकली पेंट की 12 बाल्टी जब्त की गईं लेकिन मुकदमे की सुनवाई और उसके बाद की अपील के बाद अधीनस्थ अदालत ने राम बाबू को बरी कर दिया।
एशियन पेंट्स ने इस फैसले को चुनौती दी लेकिन उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था।
भाषा सिम्मी माधव
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