नयी दिल्ली, 14 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दो विरोधी पक्षकारों के बीच सौहार्दपूर्ण तरीके से समझौता होने के मद्देनजर सोमवार को दो प्राथमिकियां रद्द कर दीं, जिनमें से एक यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित थी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने, हमला करने और बलात्कार के आरोप में दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकियों को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों ने अपने मतभेदों को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लिया है और वे आपसी सहमति पर पहुंच गए हैं…मुकदमे को जारी रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।’’
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उसे ‘‘एक असामान्य स्थिति का सामना करना पड़ा’’ जब भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) सहित अन्य आरोपों को शामिल करते हुए एक प्राथमिकी दर्ज की गई। यह प्राथमिकी विरोधी पक्ष द्वारा पहले दर्ज की गई प्राथमिकी के तुरंत बाद दर्ज की गई थी।
अदालत ने कहा कि घटनाओं का यह क्रम ‘‘आरोपों को एक निश्चित संदर्भ’’ प्रदान करता है जिससे संकेत मिलता है कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली दूसरी प्राथमिकी ‘‘प्रतिक्रिया में उठाया गया कदम हो सकती है।’’
दूसरी प्राथमिकी में शिकायतकर्ता महिला ने मामले को आगे न बढ़ाने की इच्छा स्पष्ट रूप से व्यक्त की है। ऐसा बताया गया है कि शिकायतकर्ता विवाहित है, अपने निजी जीवन में व्यस्त है और आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से उसके जीवन की शांति एवं स्थिरता भंग होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘इससे सभी संबंधित पक्षों, विशेषकर शिकायतकर्ता की परेशानी बढ़ेगी और अदालतों पर बोझ बढ़ेगा जबकि कोई सार्थक परिणाम मिलने की कोई संभावना नहीं है।’’
यह फैसला बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ के मार्च 2025 के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर दिया गया जिसमें मामलों में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।
पहली प्राथमिकी नवंबर 2023 में जलगांव जिले में दर्ज की गई थी जिसमें गैरकानूनी रूप से एकत्र होने एवं हमला करने का आरोप लगाया गया था जबकि दूसरी प्राथमिकी अगले दिन दर्ज की गई जिसमें यौन उत्पीड़न एवं आपराधिक धमकी सहित कई आरोप लगाए गए थे।
भाषा सिम्मी अविनाश
अविनाश