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रायपुर, 14 जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में स्थित आदिवासी संग्रहालय लोगों को राज्य की आदिवासी परंपरा की समृद्ध विरासत से रूबरू कराने में सफल रहा है।
आदिवासी समुदाय छत्तीसगढ़ की परंपरा, कला और संस्कृति की पहचान हैं। जनजातियों के इस सुंदर संसार को दुनिया से रूबरू कराने के लिए छत्तीसगढ़ की मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार ने नवा रायपुर अटल नगर में एक संग्रहालय का निर्माण करा एक ही छत के नीचे राज्य की पूरी जनजातीय संस्कृति को जीवंत कर दिया है।
इस वर्ष 14 मई को मुख्यमंत्री साय ने नवा रायपुर अटल नगर में करीब 10 एकड़ क्षेत्र में बने आदिवासी संग्रहालय (ट्राइबल म्यूजियम) का लोकार्पण किया था। तब से यह संग्रहालय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
आदिवासी संग्रहालय में आने वाली नयी पीढ़ी यहां की 14 गैलरियों में छत्तीसगढ़ में निवास करने वाली 43 जनजातियों की पूरी संस्कृति को नजदीक से देख रही है। हर गैलरी, आदिवासी संस्कृति और परंपरा की पूरी कहानी बयां करती है।
यदि आपको एक ही छत के नीचे आदिवासियों का भौगोलिक विवरण, तीज त्योहार, पर्व-महोत्सव से परिचित होना है तब इस संग्रहालय से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है।
यहां छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनजातीय समुदायों की जीवनशैली, वेशभूषा, लोककला, रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताओं को दृश्य और डिजिटल माध्यमों से दर्शाया गया है। जिससे नयी पीढ़ी टच स्क्रीन और डिजिटल माध्यम से अपनी जड़ों से जुड़ रहे हैं। अब प्रत्येक आदिवासी समूह की वेशभूषा और कहानी उनके हाथों में है।
आदिवासी संग्रहालय की खूबसूरती और उसकी जीवंतता को लेकर मुख्यमंत्री साय ने कहा, ”हमने जाकर देखा है। ऐसा जीवंत माहौल- मूर्तियां इस तरह बनाई गई हैं कि लगता है अभी बोल उठेंगी। यहां हमारे विभिन्न समुदायों जैसे कंवर, गोंड, भतरा, हलबा और अन्य जातियों की अलग-अलग संस्कृति, वेशभूषा और जीवनशैली को बिल्कुल सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है।’
वहीं इस संग्रहालय के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आदिम जाति विकास विभाग के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा कहते हैं, ”हमारी सरकार की और प्रशासन की हमेशा ये प्राथमिकता रही है कि इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए उसको केंद्रित करते हुए हम योजनाओं का क्रियान्वयन करें, जिससे उनके रहन—सहन, उनकी संस्कृति, लोक कला, उनकी मान्यताएं अक्षुण्ण रहे।”
आदिवासी संग्रहालय में सांस्कृतिक विरासत के अंतर्गत अबुझमाड़िया में गोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला इत्यादि, परम्परागत कला कौशल जैसे बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला आदि का तथा विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह — अबूझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर और राज्य शासन द्वारा मान्य भुंजिया तथा पण्डो के विशेषीकृत पहलुओं का प्रदर्शन किया गया है।
आदिवासी संग्रहालय के संरक्षक निर्मल कुमार बघेल बताते हैं, ”छत्तीसगढ़ में 43 जनजाति हैं, उसका कुछ ना कुछ आर्टिफैक्ट्स सामान 14 गैलरी और गलियारे में रखे हुए हैं। और यह सब जितना भी आर्टिफैक्ट हैं उसे हमारी पूरी टीम ने एक-एक गांव जाकर एकत्र किया है।”
अपनी संस्कृति को करीब से महसूस कर दुर्ग निवासी युवती तारिणी ठाकुर संग्रहालय में आकर रोमांचित है। पारंपरिक आदिवासी वेशभूषा धारण किए हुए तारिणी छत्तीसगढ़ी में कहती है, ”यहां हमारी संस्कृति के बारे में जानकारी दी गई है। इससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि यहां मेरी संस्कृति के बारे में सब दिखाया गया है। यहां आने वाले लोग इस संस्कृति को देख रहे हैं और सीख रहे हैं।”
आदिवासी संग्रहालय का लोकार्पण होने के बाद से लोग प्रतिदिन यहां बड़ी संख्या में आते हैं तथा उस संस्कृति से परिचित होते हैं, जिसके बारे में या तो किताबों में पढ़ा होता है या फिर किस्सों – कहानियों के जरिए जानते हैं।
भाषा
संजीव, रवि कांत
रवि कांत