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Tuesday, July 15, 2025

प्रवासियों की हिरासत ने बंगाली पहचान की राजनीति को फिर से हवा दी

Newsप्रवासियों की हिरासत ने बंगाली पहचान की राजनीति को फिर से हवा दी

(प्रदीप्त तापदार)

कोलकाता, 15 जुलाई (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित राज्यों में बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिए जाने और उन्हें संदिग्ध बांग्लादेशी बताए जाने से पश्चिम बंगाल में एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। इससे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बंगाली पहचान का मुद्दा फिर से उठाया है, जिसने 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिंदुत्व के रथ पर रोक लगायी थी।

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने बाकी हैं और प्रवासी मजदूरों के उत्पीड़न की शिकायतों से शुरू हुआ यह मामला अब एक बड़े राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है।

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस, कभी सामाजिक-आर्थिक संकट माने जाने वाले इस मुद्दे को भावनात्मक चुनावी मुद्दे में बदलने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। वह ओडिशा, असम, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात की भाजपा सरकारों पर राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में ‘‘संस्थागत और भाषाई प्रोफाइलिंग’’ और ‘‘गरीबी के अपराधीकरण’’ का आरोप लगा रही है।

इस कार्रवाई को ‘‘बंगालियों का अपमान’’ बताने से लेकर कोलकाता में विशाल विरोध रैलियों की योजना बनाने तक तृणमूल कांग्रेस उस भावना को फिर से जगा रही है जिसका उसने 2021 में ‘बंगाल अपनी बेटी चाहता है’ के नारे के ज़रिए बड़े प्रभाव के साथ इस्तेमाल किया था।

यह विवाद सबसे पहले जून में सामने आया था, जब कम से कम सात बांग्ला भाषी लोगों को महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से बांग्लादेश भेज दिया गया था। ऐसा कथित तौर पर नागरिकता की उचित पुष्टि किए बिना या पश्चिम बंगाल सरकार को सूचित किए बिना किया गया था।

बाद में उनकी भारतीय नागरिकता की पुष्टि होने के बाद कानूनी और राजनयिक हस्तक्षेप के ज़रिए उन्हें वापस भेज दिया गया।

पिछले सप्ताह ओडिशा पुलिस ने अवैध अप्रवासी होने के संदेह में बंगाल के विभिन्न जिलों से 444 श्रमिकों को हिरासत में लिया, हालांकि बाद में दस्तावेज जमा करने के बाद 50 को रिहा कर दिया गया।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद समीरुल इस्लाम ने कहा, ‘‘बंगाल में डेढ़ करोड़ से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर हैं जो सम्मान के साथ रह रहे हैं। लेकिन भाजपा शासित राज्यों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, जहाँ बंगालियों के साथ अपने ही देश में घुसपैठियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। बांग्ला बोलने से कोई बांग्लादेशी नहीं बन जाता।’’

इस्लाम ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘बंगाली मज़दूरों का उत्पीड़न इस बात का सबूत है कि यह बांग्ला भाषी लोगों के प्रति नफ़रत फैलाने का एक तरीका है। क्या इन प्रवासी मज़दूरों को अब भाजपा शासित राज्यों में जाने के लिए अलग वीज़ा की ज़रूरत है?’’

बंगाल सरकार अब भारतीय नागरिकों के ‘‘असंवैधानिक निर्वासन’’ के खिलाफ कानूनी विकल्प तलाश रही है।

इस मौके का फायदा उठाते हुए, तृणमूल कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान को बांग्ला भाषी प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा पर केंद्रित कर दिया है। अनुमान है कि इनमें से 22.5 लाख मज़दूर देश भर में निर्माण, ईंट भट्टों, कारखानों और अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं।

वरिष्ठ तृणमूल नेता फिरहाद हकीम ने कहा, ‘‘हमारे लोगों के साथ सिर्फ़ इसलिए घुसपैठियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है क्योंकि वे ग़रीब हैं और बांग्ला बोलते हैं।’’

समाजशास्त्री सुप्रिया बसु ने इस घटनाक्रम को ‘‘बंगाल पर उत्तर भारतीय हिंदुत्व संस्कृति थोपने’’ के प्रयास का हिस्सा बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा बंगाल में उत्तर प्रदेश शैली की हिंदुत्व की कॉलोनियां स्थापित करने की कोशिश कर रही है। भाषा के आधार पर प्रवासियों को निशाना बनाना इस प्रयास का एक उदाहरण मात्र है।’’

भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध आव्रजन की चिंताओं का हवाला देते हुए तृणमूल के आरोपों का खंडन किया है।

पार्टी के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि ओडिशा में हिरासत में लिए गए 444 लोगों में से 300 से ज़्यादा के पास ‘‘फर्जी दस्तावेज थे या सत्यापन योग्य दस्तावेज नहीं थे।

भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के नवनियुक्त अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने एक कदम और आगे बढ़कर तृणमूल कांग्रेस समर्थित, जानबूझकर की गई घुसपैठ की साजिश का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ‘‘ये लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं और ममता बनर्जी को वोट देने के लिए बंगाल लौटते हैं। यह जनसांख्यिकीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है।’

भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘‘भारतीय नागरिकों की रक्षा करने के बजाय, तृणमूल कांग्रेस घुसपैठियों को बचा रही है और खुद को ‘पीड़ित’ दिखाने की कोशिश कर रही है।’’

कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने उत्पीड़न और मनमानी गिरफ़्तारियों की निंदा की है, लेकिन उन्होंने तृणमूल की ‘‘बंगाली बनाम बाहरी’’ मुद्दे पर भावुक अपील से खुद को दूर रखा है।

माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। लेकिन तृणमूल की बयानबाज़ी का मकसद अपनी ही शासन विफलताओं से ध्यान हटाना है।’’

भाषा

गोला मनीषा

मनीषा

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