(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला को लेकर ड्रैगन अंतरिक्ष यान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर 18 दिनों के प्रवास के बाद पृथ्वी पर लौटा, तो वह अपने साथ सिर्फ वैज्ञानिक आंकड़े और बीज के नमूने ही नहीं बल्कि साहस, सपनों और भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं की कहानी भी लेकर आया।
भारतीय वायुसेना के अधिकारी और टेस्ट पायलट ग्रुप कैप्टन शुक्ला (39) ने एक्सिओम-4 मिशन के तहत अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा पूरी की। यह एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष उड़ान थी, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ का सहयोग प्राप्त था तथा एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित किया गया।
यह यात्रा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है: शुक्ला आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय हैं तथा 1984 में राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं।
शर्मा के अंतरिक्ष उड़ान के ठीक एक साल बाद, 10 अक्टूबर 1985 को जन्मे शुक्ला लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े, जिनका विमानन क्षेत्र या अंतरिक्ष से कोई सीधा संबंध नहीं था। लेकिन बचपन में एक एयर शो देखने की यात्रा ने उनमें एक चिंगारी जला दी।
उनकी बड़ी बहन शुचि शुक्ला को याद है कि यह सब कब शुरू हुआ था। उन्होंने कहा, ‘‘बचपन में वह एक बार एयर शो देखने गया था। बाद में उसने मुझे बताया कि वह विमान की गति और ध्वनि से कितना मोहित हो गया था। फिर उसने उड़ने के अपने सपने के बारे में बताया, लेकिन निश्चित रूप से उस समय कोई नहीं बता सकता था कि वह अपने सपने को कितनी जल्दी पूरा करेगा।’’
सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (सीएमएस) से शिक्षा प्राप्त शुक्ला का सितारों तक का सफ़र किसी भी तरह से तय नहीं था। नियति के एक झटके में, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में आवेदन कर रहे उनके एक सहपाठी को एहसास हुआ कि उनकी उम्र ज़्यादा हो गई है और उन्होंने शुक्ला को अपना फॉर्म थमा दिया।
शुक्ला 2006 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। उनके पास सुखोई-30 एमकेआई, मिग-29, जगुआर और डोर्नियर-228 सहित विभिन्न प्रकार के विमानों पर 2,000 घंटे से अधिक उड़ान का अनुभव है। बाद में उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल की।
पिछले साल, उन्हें भारत के पहले मानव अंतरिक्ष यान मिशन गगनयान के लिए साथी परीक्षण पायलट प्रशांत बालकृष्णन नायर, अंगद प्रताप और अजीत कृष्णन के साथ भारत के अंतरिक्ष यात्री दल का हिस्सा बनने के लिए चुना गया था।
चारों ने रूस के गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर और बेंगलुरु स्थित इसरो के अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में गहन प्रशिक्षण लिया। लेकिन 2027 में गगनयान के निर्धारित प्रक्षेपण से पहले, शुक्ला को एक्सिओम-4 चालक दल के तहत उड़ान भरने का अवसर मिला। इस तरह 41 साल बाद किसी भारतीय को मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन में शामिल किया गया।
कई बार प्रक्षेपण टलने के बाद, शुक्ला आखिरकार 25 जून को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से कैनेडी स्पेस सेंटर से रवाना हुए। मिशन के दस मिनट बाद, ड्रैगन कैप्सूल ने कक्षा में प्रवेश किया, जिसके बाद शुक्ला ने कहा ‘कमाल की राइड थी’ और राष्ट्रीय गौरव की अपनी भावना साझा की। उन्होंने कहा, ‘मेरे कंधे पर मेरे साथ मेरा तिरंगा है जो मुझे बता रहा है कि मैं अकेले नहीं, (बल्कि) मैं आप सबके साथ हूं।’
‘शक्स’ उपनाम से प्रसिद्ध और अपने शांत स्वभाव के लिए जाने जाने वाले शुक्ला अंतरिक्ष में भारतीय व्यंजन लेकर गए जिनमें गाजर का हलवा और मूंग दाल का हलवा भी शामिल था ताकि चालक दल के अन्य सहयोगियों को घर जैसा स्वाद मिल सके।
शाहरुख खान की फिल्म ‘स्वदेश’ का गाना ‘यूं ही चला चल…’ उनका पसंदीदा गीत है।
शुक्ला ने जीवन विज्ञान, कृषि, अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी और संज्ञानात्मक अनुसंधान के विविध क्षेत्रों में भारत के नेतृत्व में सात सूक्ष्म गुरुत्व प्रयोग किए।
शुक्ला ने नौ जून को एक्सिओम अंतरिक्ष की मुख्य वैज्ञानिक लूसी लो के साथ बातचीत में कहा, ‘‘मुझे बहुत गर्व है कि इसरो देश भर के राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर कुछ बेहतरीन शोध कर पाया है, जो मैं स्टेशन पर सभी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए कर रहा हूं। ऐसा करना रोमांचक और आनंददायक है।’’
अंकुरण प्रयोग का नेतृत्व दो वैज्ञानिकों- कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ के रविकुमार होसामनी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, धारवाड़ के सुधीर सिद्धपुरेड्डी द्वारा किया जा रहा है। शुक्ला ने मूंग और मेथी के बीजों को कांच की तश्तरियों में बोया और उनके अंकुरण की प्रगति को रिकॉर्ड किया तथा बाद में पृथ्वी पर विश्लेषण के लिए उन्हें कोल्ड स्टोरेज में रख दिया।
यह अध्ययन इस बात पर आधारित था कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण किस प्रकार अंकुरण और पौधों के प्रारंभिक विकास को प्रभावित करता है।
शुक्ला ने एक अन्य प्रयोग में सूक्ष्म शैवालों का इस्तेमाल किया जिनकी भोजन, ऑक्सीजन और यहां तक कि जैव ईंधन उत्पन्न करने की क्षमता की जांच की जा रही है।
उन्होंने स्टेम सेल अनुसंधान में भी भाग लिया, यह पता लगाने के लिए कि क्या पूरक पदार्थ अंतरिक्ष में चोट को भरने और ऊतक पुनर्जनन में सहायक हो सकते हैं। शुक्ला ने कहा, ‘ग्लव बॉक्स में इस शोध में काम करना बहुत अच्छा रहा। मुझे पृथ्वी और अंतरिक्ष स्टेशन के वैज्ञानिकों के बीच एक सेतु बनने पर गर्व है।’
उनके हल्के फुल्के प्रयोगों में से एक शून्य-गुरुत्वाकर्षण प्रदर्शन था जिसमें पानी का उपयोग किया गया था। सतह तनाव का फ़ायदा उठाते हुए शुक्ला ने पानी का एक तैरता हुआ बुलबुला बनाया। उन्होंने मज़ाक में कहा, ‘‘मैं यहां स्टेशन पर पानी को घुमाने रहा हूं।’’
जैसे ही मिशन पूरा होने के करीब पहुंचा, शुक्ला और उनके एक्सिओम-4 चालक दल के साथी 13 जुलाई को विदाई समारोह के लिए लंबी अवधि के मिशन, ‘एक्सपेडिशन 73’ के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ शामिल हुए।
शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और स्कूली छात्रों से बातचीत की और रेडियो के ज़रिए इसरो केंद्र से भी जुड़े। उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ़ मेरी यात्रा नहीं है, यह पूरे भारत की यात्रा है।’
शुक्ला का मिशन मंगलवार को कैलिफोर्निया तट के पास ड्रैगन ‘ग्रेस’ अंतरिक्ष यान के उतरने के साथ संपन्न हो गया लेकिन उनकी कहानी जारी रहेगी।
आगामी गगनयान परियोजना तथा अंतरिक्ष अनुसंधान में नए रास्ते खुलने के साथ, उनका अनुभव भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आईएसएस से शुक्ला ने कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि आप में से प्रत्येक इस यात्रा का हिस्सा बनें। आइए, हम सब मिलकर भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत करें।’
भाषा आशीष नरेश
नरेश