नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने आतंकवादी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ)’ के एक कथित कार्यकर्ता को जमानत देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि वह अपने ‘प्रभाव’ के चलते सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने आरोपी अर्सलान फिरोज अहेनगर (जिसकी उम्र 20 साल के आसपास बताई जा रही है) के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य पाए। पीठ ने सात जुलाई को पारित आदेश में कहा कि अर्सलान ने आतंकवादियों की तस्वीरें पोस्ट कीं और लोगों को आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए उकसाया।
आदेश में कहा गया है, ‘‘यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता (अर्सलान) के खिलाफ यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वह मारे गए आतंकवादी मेहरान यासीन शल्ला से करीब से जुड़ा हुआ था या उसने खुद आतंकवादी गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।’’
उच्च न्यायालय ने मामले में अर्सलान को जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के सितंबर 2024 के आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी।
अर्सलान को 30 दिसंबर 2021 को गिरफ्तार किया गया था।
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने आरोप लगाया है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के बाद लश्कर-ए-तैयबा और टीआरएफ जैसे विभिन्न आतंकवादी संगठन अल्पसंख्यकों, सुरक्षा बलों, राजनीतिक हस्तियों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को निशाना बनाकर हमले करने की साजिशें रच रहे थे।
एनआईए ने दावा किया है कि इनमें से कुछ साजिशें कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में कथित तौर पर अशांति, अस्थिरता और भय पैदा करने के लिए रची गईं और उन्हें अंजाम भी दिया गया।
जांच एजेंसी के मुताबिक, अर्सलान पर मेहरान यासीन शल्ला नामक व्यक्ति से जुड़े होने का आरोप है, जो टीआरएफ/लश्कर का हिस्सा था।
एनआईए ने कहा कि शल्ला दो अन्य व्यक्तियों के साथ 24 नवंबर 2021 को एक मुठभेड़ में मारा गया था।
जांच एजेंसी के अनुसार, शल्ला से प्रभावित अर्सलान विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर सक्रिय था और कट्टरपंथी सामग्री साझा करना था।
एनआईए का आरोप है कि अर्सलान ने सोशल मीडिया पर अंसार गजवत-उई-हिंद और शेखू नाइकू जैसे कुछ ग्रुप और कई जीमेल आईडी बनाईं, जिनके माध्यम से कट्टरपंथी विचार साझा किए गए और युवाओं को टीआरएफ जैसे आतंकवादी समूहों में शामिल होने के लिए बरगलाया गया।
जांच एजेंसी ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए उसने फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल किया।
अर्सलान के लिए जमानत का अनुरोध करते हुए उसके वकील ने दलील दी कि निचली अदालत यह समझने में विफल रही कि रिकॉर्ड में टीआरएफ के साथ उसके (अर्सलान) संबंधों को दर्शाने वाली कोई सामग्री नहीं थी और इसलिए उसके खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) लागू नहीं किया जा सकता।
एनआईए ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पता चलता है कि आरोपी देश की सुरक्षा से समझौता करने के इरादे से सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी जानकारी का प्रचार करने में सक्रिय रूप से शामिल था।
पीठ ने कहा कि अर्सलान ने देश में आतंकवादी कृत्य को बढ़ावा दिया, जो यूएपीए की धारा 18 के तहत दंडनीय है।
उसने कहा, ‘‘रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री यह भी दर्शाती है कि अपीलकर्ता की ओर से साझा किए गए संदेश लोगों को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने वाले थे। अपीलकर्ता ने आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन करने के लिए मेहरान यासीन शल्ला की तस्वीरों, वीडियो आदि का भी इस्तेमाल किया और वह देश में अशांति पैदा करने के लिए टीआरएफ की कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार भी कर रहा है।’’
भाषा पारुल दिलीप
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