नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार (एडीएचडी) से उत्पन्न अनिद्रा या नींद की गड़बड़ी, एडीएचडी के लक्षणों वाले वयस्कों के जीवन की गुणवत्ता में कमी का कारण हो सकती है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
आमतौर पर बचपन और किशोरावस्था में सामने आने वाले एडीएचडी में बेचैनी, अतिसक्रियता और कम ध्यान जैसे लक्षण होते हैं। यह एक तंत्रिका-विकासात्मक विकार है जो मस्तिष्क के ‘प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ के देरी से परिपक्व होने से जुड़ा है, जो ध्यान और एकाग्रता के लिए महत्वपूर्ण है।
ब्रिटेन के साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय और नीदरलैंड इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंस के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में, शोधकर्ताओं ने पाया कि वयस्कों में ध्यान न देने और अतिसक्रियता के एडीएचडी संबंधी लक्षण अधिक गंभीर अनिद्रा, नींद की कम गुणवत्ता और देर से सोने और देर से जागने की आदत से जुड़े थे।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) ‘मेंटल हेल्थ’ में प्रकाशित इस अध्ययन में ‘नीदरलैंड स्लीप रजिस्ट्री’ के आंकड़ों का अध्ययन किया गया, जो दस हजार से अधिक वयस्क प्रतिभागियों का एक ऑनलाइन सर्वेक्षण था।
एडीएचडी के लक्षणों, नींद की गड़बड़ी, अवसाद और जीवन की गुणवत्ता से जुड़े सवालों पर 1,364 मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध वयस्क प्रतिभागियों के जवाबों का विश्लेषण किया गया।
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर, वरिष्ठ लेखिका सारा एल चेलप्पा ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि नींद में व्यवधान तंत्रिका व्यवहार और संज्ञानात्मक प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें ध्यान और भावनात्मक विनियमन शामिल हैं। साथ ही, नींद में व्यवधान एडीएचडी से संबंधित आवेगशीलता और अतिसक्रियता से उत्पन्न हो सकता है, जो नींद संबंधी विकारों और एडीएचडी के बीच एक मजबूत चक्र का संकेत देता है।’’
लेखकों ने कहा कि एडीएचडी से ग्रस्त लोगों में सामान्य आबादी की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक नींद संबंधी विकार का पता चलता है, जो नींद में देरी, सोते समय अधिक हिलना-डुलना, दिन में नींद आना या रात में कम नींद के रूप में प्रकट हो सकता है।
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के सह-लेखक सैमुएल कॉर्टेस ने कहा कि अपनी समझ में सुधार करके, हम ऐसे उपचार विकल्प खोज सकते हैं जो एडीएचडी से ग्रस्त लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करें।
भाषा वैभव माधव
माधव