(प्रबीर सिल)
कैलाशहर (त्रिपुरा), 15 जुलाई (भाषा) त्रिपुरा के उनाकोटी ज़िले में स्थित मनु वैली चाय बागान जलवायु परिवर्तन और श्रमबल की भारी कमी का सामना कर रहा है और पिछले तीन वर्षों में इसका उत्पादन धीरे-धीरे घट रहा है। एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी। यह बागान राज्य के कुल चाय उत्पादन में लगभग एक-चौथाई का योगदान देता है।
इस पूर्वोत्तर राज्य में सालाना 90 लाख किलोग्राम प्रसंस्कृत चाय का उत्पादन होता है। राज्य के सबसे बड़े बागान में उत्पादन 2022 के 24 लाख किलोग्राम से घटकर 2023 में 22 लाख किलोग्राम और 2024 में 21 लाख किलोग्राम रह गया है, जिससे प्रबंधन का भविष्य अनिश्चित हो गया है।
अधिकारी ने कहा कि उत्पादन में गिरावट के रुझान के कारण प्रबंधन ने हरी चाय (ग्रीन टी) का उत्पादन बंद कर दिया है और केवल पारंपरिक किस्म पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
प्रबंधक (मानव संसाधन) प्रबीर डे ने पीटीआई-भाषा को बताया, ’‘पिछले कुछ साल में जलवायु परिवर्तन बागान के भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती प्रतीत होता है। औसत वर्षा और वर्षा के असमान वितरण ने चाय बागान में उत्पादन को प्रभावित किया है।’’
उनके अनुसार, पहले चाय बागानों में जनवरी या फरवरी में बारिश होती थी, लेकिन अब अप्रैल में ही बारिश शुरू हो जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘मई और जून के दौरान अत्यधिक बारिश चाय बागानों के समुचित विकास में बाधा डालती है। बागानों को उगाने के लिए समान रूप से वितरित वर्षा की आवश्यकता होती है, जो आजकल देखने को नहीं मिलती। यह चाय बागान के भविष्य के लिए बड़ी चिंताओं में से एक है।’
उन्होंने कहा कि कुशल श्रमिकों की कमी और उनकी अनुपस्थिति भी बागान के सुचारू संचालन के लिए बड़ी चुनौती है। कुल 900 पंजीकृत श्रमिकों में से केवल 300 ही नियमित रूप से काम पर आते हैं।
डे ने कहा कि प्रबंधन ने श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए चाय की पत्तियों को इकट्ठा करने के लिए प्लकिंग मशीनें शुरू की हैं।
उन्होंने कहा, ‘कोई और विकल्प न मिलने पर, हमने 50 पत्तियां तोड़ने वाली मशीनें खरीदी हैं, लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाली चाय बनाने के लिए पत्तियों को हाथ से तोड़ना ही सबसे अच्छा विकल्प है। हमने लगभग 100 आदिवासी ग्रामीणों को चाय तोड़ने का प्रशिक्षण दिया है, लेकिन फिर भी कुशल श्रमबल की कमी है।’
उन्होंने बताया कि फिलहाल, एक चाय मज़दूर को पीएफ, बोनस, ग्रैच्युटी, चिकित्सा भत्ता और परिवार के लिए मुफ्त राशन के अलावा 204 रुपये की दैनिक मजदूरी मिलती है।
उद्योग सूत्रों ने बताया कि चाय बागानों में ‘कम’ मजदूरी के कारण बड़ी संख्या में पंजीकृत मज़दूर अधिक कमाई के लिए मनरेगा या अन्य गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके चलते चाय तोड़ने वालों की कमी हो जाती है।
डे ने कहा कि हर गुजरते साल के साथ चाय उत्पादन लागत बढ़ रही है, जबकि नीलामी बाजारों में कीमतें ‘स्थिर’ बनी हुई हैं।
उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में, त्रिपुरा में उत्पादित चाय का विक्रय मूल्य 206 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि प्रति किलोग्राम उत्पादन लागत 180 रुपये से अधिक है। चाय उद्योग में स्थिति की तत्काल समीक्षा करने की आवश्यकता है।’’
भाषा राजेश राजेश अजय
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