(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर 18 दिन के प्रवास के बाद मंगलवार को खुशी और मुस्कुराहट के साथ पृथ्वी पर लौट आए। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान की महत्वाकांक्षाओं को साकार करने का वादा करती है।
लखनऊ में जन्मे शुक्ला और निजी ‘एक्सिओम-4’ मिशन के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री प्रशांत समयानुसार रात 2:31 बजे (भारतीय समयानुसार अपराह्न 3:01 बजे) कैलिफोर्निया के सैन डिएगो के निकट प्रशांत महासागर में उतरे। इस दौरान पूरे भारत में खुशी की लहर दौड़ गई।
भारतीय वायु सेना में ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत रूस मिशन के तहत अंतरिक्ष की यात्रा की थी।
वह ऐसे पहले भारतीय भी बन गए हैं, जिन्होंने पृथ्वी की कक्षा में सबसे लंबे समय (20 दिन) तक रहकर अंतरिक्ष की यात्रा की।
भारत, हंगरी और पोलैंड के लिए इस मिशन ने मानव अंतरिक्ष उड़ान की वापसी को साकार किया है, क्योंकि इन देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने 40 वर्षों से अधिक समय बाद पहली बार अंतरिक्ष की यात्रा की है।
ड्रैगन ग्रेस अंतरिक्ष यान 25 जून को फ्लोरिडा से उड़ा था और 28 घंटे की यात्रा के बाद 26 जून को आईएसएस पहुंचा था।
कक्षीय प्रयोगशाला में शुक्ला, कमांडर पैगी व्हिटसन तथा पोलैंड के मिशन विशेषज्ञ स्लावोज़ उज़्नान्स्की-विस्नीवस्की और हंगरी के टिबोर कापू सहित एक्सिओम-4 मिशन दल ने अगले 18 दिन 60 प्रयोगों और 20 संपर्क सत्रों में बिताए।
ड्रैगन अंतरिक्ष यान ने 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से यात्रा करते हुए एक्सिओम-4 चालक दल के सदस्यों को लेकर धीरे-धीरे गति कम करने और पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के लिए कई प्रक्रियाएँ पूरी कीं तथा प्रशांत महासागर में उतरने से पहले तीव्र गर्मी का सामना किया।
कुछ ही मिनटों बाद ड्रैगन अंतरिक्ष यान को स्पेसएक्स के ‘रिकवरी शिप शैनन’ के ऊपर ले जाया गया, जहां शुक्ला और अन्य अंतरिक्ष यात्री मुस्कुराते हुए और कैमरों की ओर हाथ हिलाते हुए अंतरिक्ष यान से बाहर निकले।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर तीन सप्ताह तक भारहीनता की स्थिति में रहने के बाद पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के साथ तालमेल बिठाने के लिए पैरों के सहारे चलवाने में शुक्ला और तीनों अंतरिक्ष यात्रियों की ‘ग्राउंड स्टाफ’ ने मदद की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अंतरिक्ष प्रवास के बाद पृथ्वी पर लौटे शुभांशु शुक्ला को बधाई दी और कहा कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर ‘एक्सिओम-4’ मिशन के संचालन में उनकी भूमिका ने भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है।
उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इस मिशन में शामिल सभी लोगों को मेरी बधाई।’’
अंतरिक्ष यात्रा से शुक्ला के लौटने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘‘मैं ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का स्वागत करने में राष्ट्र के साथ शामिल हूं, क्योंकि वह अपने ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन से पृथ्वी पर लौट आए हैं।’’
लखनऊ में शुक्ला के माता-पिता ने अपने बेटे के पृथ्वी पर लौटने पर राहत की साँस ली। शुक्ला के पिता शंभू दयाल शुक्ला और माँ आशा देवी की आंखों से खुशी के आँसू निकल आए। उनकी बहन शुचि मिश्रा ने भी नम आँखों और हाथ जोड़कर अपने भाई के पृथ्वी पर उतरने का स्वागत किया।
शंभू दयाल शुक्ला ने कहा, ‘‘वह अंतरिक्ष में गए और वापस आए तथा हम बहुत खुश हैं, क्योंकि इस मिशन का देश के गगनयान कार्यक्रम के लिए अपना महत्व है।’’
इसरो ने अंतरिक्ष उड़ान के लिए 550 करोड़ रुपये का निवेश किया था और इस मिशन से प्राप्त सीख से भारत को अपनी मानव अंतरिक्ष उड़ान महत्वाकांक्षाओं – गगनयान परियोजना को पूरा करने में मदद मिलने की उम्मीद है, जिसके 2027 तक प्रक्षेपण की योजना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करने वाले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में शुक्ला ने अपने समर्पण, साहस और अग्रणी भावना से करोड़ों सपनों को प्रेरित किया है।
मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘यह हमारे अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन – गगनयान की दिशा में एक और मील का पत्थर है।’’
हेलीकॉप्टर के जरिए तट पर ले जाए जाने से पहले एक्सिओम-4 के चालक दल को जहाज पर ही कई चिकित्सीय जांचों से गुजरना पड़ा।
चारों अंतरिक्ष यात्रियों के फिर से धरती के वातावरण में गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के प्रति अनुकूलन के लिए सात दिन पुनर्वास कार्यक्रम में रहने उम्मीद है, क्योंकि पृथ्वी की कक्षा में वे भारहीनता की स्थिति में थे।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि शुक्ला ने सभी सात सूक्ष्म गुरुत्व प्रयोगों और अन्य नियोजित गतिविधियों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है, जिससे ‘एक्सिओम-4’ मिशन में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है।
इसने कहा कि टार्डिग्रेड्स के भारतीय प्रकार, मायोजेनेसिस, मेथी और मूंग के बीजों का अंकुरण, साइनोबैक्टीरिया, सूक्ष्म शैवाल, फसल के बीज और ‘वॉयेजर डिस्प्ले’ पर प्रयोग योजना के अनुसार पूरे हो गए हैं।
भाषा
नेत्रपाल दिलीप
दिलीप