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Thursday, July 17, 2025

प्रारंभिक गिरफ्तारी की प्रक्रियागत खामियां दूर करने के बाद पुन: गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं: अदालत

Newsप्रारंभिक गिरफ्तारी की प्रक्रियागत खामियां दूर करने के बाद पुन: गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं: अदालत

नयी दिल्ली, 16 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पहली गिरफ्तारी के दौरान पुलिस द्वारा की गई प्रक्रियात्मक चूक, कानूनी आवश्यकताओं के पूरा होने के बाद की गई दोबारा गिरफ्तारी में बाधा नहीं बनती।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने 15 जुलाई को कहा कि अगर ऐसी खामियों को दूर करने के बाद किसी आरोपी को दोबारा गिरफ्तार किया जाता है तो वह उचित है।

अदालत ने यह टिप्पणी एक संगठित अपराध गिरोह के कथित चार सदस्यों—अनवर खान, हासिम बाबा, समीर और जोया खान—द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने 10 जून को सुनील जैन की हत्या के मामले में की गई अपनी पुनः गिरफ्तारी को ‘अवैध और असंवैधानिक’ करार दिए जाने की मांग की थी।

अदालत ने कहा, ‘आपराधिक कानून में प्रक्रियात्मक सुरक्षा नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आवश्यक है, लेकिन इन्हें जघन्य अपराधों की वैध जांच को विफल करने के लिए ढाल नहीं बनाया जा सकता। पहली गिरफ्तारी में पुलिस द्वारा की गई चूक, कानूनी आवश्यकताओं के पूरा हो जाने पर की गई दोबारा गिरफ्तारी में बाधा नहीं बनती।’

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ताओं अनुराग जैन, एम एम खान, अमित चड्ढा और अतिन चड्ढा ने दलील दी कि एक विशेष अदालत ने 13 मई को उनकी पहली गिरफ्तारी को ‘अमान्य’ घोषित कर दिया था, क्योंकि गिरफ्तारी के लिखित आधार उन्हें नहीं बताए गए थे। अदालत ने यह भी कहा था कि बिना नए साक्ष्य के उनकी पुनः गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने अदालत के आदेशों को दरकिनार करते हुए उन्हें बिना पर्याप्त आधार के दोबारा गिरफ्तार किया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन है।

वहीं, राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता संजीव भंडारी और विशेष लोक अभियोजक अखंड प्रताप सिंह ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं की पहली रिहाई केवल तकनीकी खामी के कारण हुई थी, न कि साक्ष्यों की कमी के कारण। उन्होंने कहा कि पुनः गिरफ्तारी के समय सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया और आरोपियों को पुन: गिरफ्तारी के आधार बताए गए।

न्यायाधीश ने राज्य सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि आरोपी पहले की गई प्रक्रियात्मक चूकों का लाभ नहीं उठा सकते। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है, लेकिन यह न्याय की प्रक्रिया को गंभीर आपराधिक मामलों, जैसे कि मकोका के अंतर्गत आने वाले अपराधों, में निष्फल करने की सीमा तक नहीं जा सकती।’

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सामग्री मौजूद है, जिसमें उनके ‘विस्तृत आपराधिक इतिहास’ और एक बड़े अपराध सिंडिकेट में उनकी कथित भूमिका से संबंधित ठोस साक्ष्य शामिल हैं।

आदेश में कहा गया, ‘याचिकाकर्ताओं की प्रारंभिक गिरफ्तारी केवल तकनीकी आधार पर अमान्य घोषित की गई थी। एक बार जब प्रक्रियागत अनियमितताओं को सुधार दिया गया और गिरफ्तारी के आधार स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किए गए, तो उनकी पुनः गिरफ्तारी को अवैध नहीं ठहराया जा सकता।’

भाषा खारी मनीषा

मनीषा

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