लखनऊ, 16 जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश सरकार की विद्यालयों के विलय की पहल को लेकर जारी बहस के बीच राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप प्रारंभिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए विलय के बाद खाली होने वाले स्कूल भवनों को ‘बाल वाटिका’ के रूप में इस्तेमाल करने की योजना की घोषणा की।
राज्य सरकार ने 50 से कम विद्यार्थियों वाले प्राथमिक विद्यालयों को निकट के दूसरे स्कूल में विलय करने का फैसला किया है।
विपक्षी दल इस मामले को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार के इस कदम से बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं शिक्षा से वंचित हो जाएंगे।
राज्य सरकार विरोध के बावजूद विलय के बाद खाली होने वाले स्कूल भवनों को ‘बाल वाटिका’ के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है।
सरकार की दलील है कि यह फैसला संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने और तीन से छह साल के बच्चों के लिए पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिये लिया गया है।
बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “बेसिक शिक्षा विभाग समग्र शिक्षा के माध्यम से तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए योजनाबद्ध तरीके से संसाधन सृजन और वातावरण निर्माण पर काम कर रहा है और उन्हें बुनियादी ढांचे और शैक्षिक सामग्री से लैस किया जा रहा है।”
उन्होंने बताया कि वर्तमान में स्कूल परिसरों में स्थित सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को ‘बाल वाटिका’ घोषित किया गया है।
कुमार ने बताया कि विद्यालयों के नियमानुसार विलय के बाद खाली होने वाले भवनों का इस्तेमाल बाल वाटिकाओं के लिए किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इन बालवाटिकाओं को निकटतम प्राथमिक विद्यालयों का हिस्सा माना जाएगा और आस-पास के क्षेत्रों के आंगनबाड़ी केंद्र इन बाल वाटिकाओं में संचालित किए जाएंगे।
अधिकारी ने बताया कि इन पूर्व-प्राथमिक स्कूल केंद्रों की मदद के लिए बेसिक शिक्षा विभाग हर बाल वाटिका में एक ईसीसीई (प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा) शिक्षक तैनात करने की योजना बना रहा है।
उन्होंने बताया कि ये शिक्षक बच्चों के लिए एक आकर्षक शिक्षण वातावरण बनाने के लिये फर्नीचर, खेल की सामग्री, कार्यपुस्तिकाओं और शिक्षण सामग्री के उपयोग की देखरेख करेंगे।
भाषा सलीम जितेंद्र
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