नयी दिल्ली, 16 जुलाई (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालने से पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने बुधवार को कहा कि कानूनी पेशे में कार्य-जीवन संतुलन नहीं, बल्कि केवल काम ही काम होता है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक संस्थाओं के विकास के साथ-साथ ईमानदारी और स्वतंत्रता निरंतर बरकरार रहनी चाहिए।
न्यायमूर्ति बाखरू ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपनी पदोन्नति के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मेरे विधि शोधकर्ताओं ने सीखा है कि इस पेशे में कार्य-जीवन संतुलन नहीं है। केवल काम है, और यही जीवन है।’’
न्यायमूर्ति बाखरू (59) ने कहा कि न्यायिक संस्था के मूल तत्व – ईमानदारी, सहानुभूति और स्वतंत्रता – निरंतर बने रहने चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘संस्था विकसित होती है, लेकिन इसके मूल में ईमानदारी, स्वतंत्रता और सहानुभूति बरकरार रहनी चाहिए। मैंने इन विचारों को अपने तरीके से जीने की कोशिश की है।’’
न्यायमूर्ति बाखरू ने कहा कि पिछले दशकों में ‘‘जटिल मामलों को स्वीकार करते हुए, न्यायशास्त्र को विकसित करते हुए, समाज के बदलते ताने-बाने के प्रति संवेदनशील रहते हुए और कानून के शासन को मजबूती से कायम रखते हुए’’ दिल्ली उच्च न्यायालय का कद बढ़ा है।
भाषा शफीक माधव
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