25.5 C
Jaipur
Thursday, July 17, 2025

न्यायालय ने दुष्कर्म और हत्या के दोषी की फांसी की सजा को कम करके आजीवन कारावास में बदला

Newsन्यायालय ने दुष्कर्म और हत्या के दोषी की फांसी की सजा को कम करके आजीवन कारावास में बदला

नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक नाबालिग से दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को कम करके बिना किसी छूट के आजीवन कारावास में बदल दिया।

न्यायमूर्ति विक्रमनाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि निचली अदालत और उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड देने के लिए केवल ‘अपराध की नृशंसता’ पर टिप्पणी की।

पीठ ने अपने 16 जुलाई के फैसले में कहा, ‘‘अदालतों में इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अन्य किसी परिस्थिति पर विचार नहीं किया गया कि मामला दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में आता है। हमारे विचार से इस तरह का रुख नहीं चल सकता।’’

मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति ने जनवरी 2020 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जिसमें उसकी दोषसिद्धि और फांसी की सजा को बरकरार रखा गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार व्यक्ति ने जुलाई 2018 में 10 वर्षीय बच्ची को मिठाई देने के बहाने अपनी झोपड़ी में बुलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी।

शीर्ष अदालत ने कहा,‘‘संभवत: अपीलकर्ता ने कैंडी या खिलौने की सबसे मासूम इच्छा का सबसे बुरे तरीके से फायदा उठाया।’’

आरोप है कि दोषी व्यक्ति मासूम बच्चों को फुसलाकर अपनी झोपड़ी में बुलाता था और उनमें से ‘‘अपनी पसंद के बच्चों को रोककर’’ बाकी को जाने देता था।

पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला दोषी की झोपड़ी से पीड़िता के शव की बरामदगी, अंतिम बार देखे जाने की बात और डीएनए साक्ष्य पर आधारित था।

व्यक्ति के खिलाफ दोषसिद्धि के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए, पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने उसके खिलाफ अपना मामला उचित संदेह से परे साबित कर दिया है, लेकिन वह ‘अपराध की क्रूरता के प्रति सचेत’ है।

पीठ ने आगे कहा, ‘‘इसके बाद, अपराध के सबूत छिपाने के लिए, बच्ची की असहाय अवस्था में हाथ से गला घोंटकर हत्या कर दी गई।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘किसी भी परिस्थिति पर विचार नहीं किया गया। केवल घटना की क्रूरता पर विचार किया गया।’’

पीठ ने कहा कि मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपीलकर्ता परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण स्कूल नहीं जा सका और उसने 12 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘उपरोक्त परिस्थितियों और ‘दुर्लभतम में दुर्लभतम’ श्रेणी की सीमा को ध्यान में रखते हुए, हम अपीलकर्ता को मृत्युदंड की सजा के बजाय उसके प्राकृतिक जीवनकाल तक बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा देना उचित समझते हैं।’’

भाषा वैभव नरेश

नरेश

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles