नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) दिल्ली सरकार डेयरी से निकलने वाले गोबर से ऊर्जा उत्पादन की संभावना तलाश रही है। वह ओखला लैंडफिल साइट पर निर्माण एवं विध्वंस (सी एंड डी) अपशिष्ट पुनर्चक्रण संयंत्र स्थापित करने की दिशा में भी काम कर रही है। एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ हाल ही में हुई बैठक में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने कचरे का स्थानीय स्तर पर और पर्यावरण अनुकूल तरीके से निपटान करने की अपनी योजना साझा की।
उन्होंने बताया कि एक अहम पहल मदनपुर खादर में सक्रिय बायोगैस संयंत्र है, जहां डेयरी से निकलने वाले गोबर से ऊर्जा पैदा की जाती है।
अधिकारी के मुताबिक, इसके अलावा एमसीडी गोबर को नालियों में जाने से रोकने के लिए विशेष नालियां और निपटान टैंक बना रही है। उन्होंने बताया कि इस मॉडल को अन्य डेयरी कॉलोनियों में भी लागू करने के लिए लगभग 15 करोड़ रुपये की जरूरत है।
एमसीडी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली 11 अधिकृत डेयरी में से एक मदनपुर खादर में डेयरी मालिकों ने 10 टन प्रतिदिन (टीपीडी) क्षमता का बायोगैस संयंत्र स्थापित किया है।
अधिकारी ने कहा, ‘निगम नांगली डेयरी में एक प्रदूषण नियंत्रण परियोजना भी क्रियान्वित कर रहा है, जिसमें गोबर को निकास नाले में जाने से रोकने के लिए एक अलग नाले और गोबर-निपटान कक्ष का निर्माण शामिल है। इस पायलट परियोजना की अनुमानित लागत 1.7 करोड़ रुपये है। अन्य डेयरी कॉलोनियों में भी इस मॉडल को लागू करने के लिए 15 करोड़ रुपये का प्रस्ताव पेश किया गया है।’
उन्होंने बताया कि एक अन्य प्रमुख परियोजना ओखला लैंडफिल साइट पर एक नया निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट पुनर्चक्रण संयंत्र स्थापित करना है। इस सुविधा का मकसद रोजाना 1,000 टन निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट का प्रसंस्करण करना है, जिससे दिल्ली में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लगभग 5,500 से 6,000 टन निर्माण अपशिष्ट का निपटान हो सकेगा।
अधिकारी के अनुसार, दिसंबर 2026 तक चालू होने वाली यह सुविधा जैव-खनन के माध्यम से उपलब्ध कराई गई पुनः प्राप्त आठ एकड़ भूमि पर बनाई जाएगी।
उन्होंने बताया कि पुनर्चक्रित सामग्री (टाइल, ईंट, ब्लॉक, इंटरलॉकिंग पेवर, कर्बस्टोन, चेकर्ड टाइल, स्टोन डस्ट और कंक्रीट ईंट) का इस्तेमाल सरकारी परियोजनाओं में किया जाएगा।
इस पहल से परिचित एक अन्य अधिकारी ने बताया कि एमसीडी ने सभी नागरिक निर्माण कार्यों में इन पुनर्चक्रित सामग्री का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
दिल्ली में वर्तमान में सार्वजनिक उपयोग के लिए 106 निर्दिष्ट सीएंडडी अपशिष्ट डंपिंग स्थल हैं। बड़े जनरेटर (300 टन प्रतिदिन से अधिक उत्पादन करने वाले) के लिए प्रसंस्करण संयंत्रों में सीधे निपटान अनिवार्य है। उचित संग्रहण और रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए एमसीडी-311 ऐप और स्थानीय कनिष्ठ अभियंताओं (जेई) के माध्यम से निगरानी लागू की जा रही है।
हालांकि, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से निर्धारित उपयोग लक्ष्यों को पूरा करना एक चुनौती बना हुआ है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में दिल्ली अपने 16 लाख मीट्रिक टन के सीएंडडी अपशिष्ट उत्पाद उठाव लक्ष्य का केवल 14 प्रतिशत (लगभग 2.3 लाख मीट्रिक टन) ही हासिल कर पाई। 2025-26 के लिए लक्ष्य को संशोधित कर अधिक यथार्थवादी 9.85 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया, लेकिन अब तक विभिन्न विभागों की ओर से केवल 2.49 प्रतिशत अपशिष्ट ही उठाया जा सका है।
भाषा पारुल रंजन
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