नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) भारत को जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए 2030 तक प्रमुख क्षेत्रों में 1,500 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी डेलॉयट इंडिया की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई।
डेलॉयट की रिपोर्ट ‘जलवायु प्रतिक्रिया: भारत के जलवायु और ऊर्जा परिवर्तन के अवसर का लाभ उठाना’ में कहा गया है कि यह निवेश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, जैव ईंधन, कार्बन उत्सर्जन शून्य करने और पर्यावरण अनुकूल बुनियादी ढांचे की दिशा में भारत के प्रयासों से प्रेरित होगा।
रिपोर्ट में जल सुरक्षा, पर्यावरण अनुकूल कृषि और परिवहन अवसंरचना, चक्रीय अर्थव्यवस्था, अपशिष्ट प्रबंधन और डिजिटल प्रणालियों एवं मंचों को निवेश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में रेखांकित किया गया है, जो भारत की जलवायु और ऊर्जा बदलाव पहल को आगे बढ़ाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए लगभग 200-250 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी, जिसमें उन्नत विनिर्माण, ग्रिड एकीकरण और प्रणाली विस्तार जैसे क्षेत्र शामिल होंगे।
भारत को अपनी वर्तमान क्षमता और 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के घोषित लक्ष्य के बीच के अंतर को पाटने के लिए 2030 तक 300 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़नी होगी।
इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि को ऊर्जा भंडारण अवसंरचना को आठ गुना करने की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए वित्त वर्ष 2029-30 तक 250-300 अरब डॉलर के पूंजीगत खर्च की जरूरत होगी।
डेलॉयट दक्षिण एशिया के साझेदार विरल ठक्कर ने कहा, “इस निवेश से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा, ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और कमजोर समुदायों को जलवायु जोखिमों से बचाया जा सकेगा।”
भाषा अनुराग अजय
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