बेंगलुरु, 18 जुलाई (भाषा) सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने शुक्रवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय में यह खुलासा करके अनियंत्रित ऑनलाइन गतिविधियों के खतरों को उजागर किया कि ‘‘सुप्रीम कोर्ट ऑफ कर्नाटक’’ (कर्नाटक के सर्वोच्च न्यायालय) के नाम से सफलतापूर्वक एक फर्जी और वह भी सत्यापित, एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट बनाया गया है।
सोशल मीडिया दिग्गज ‘एक्स’ कॉर्प के साथ चल रहे टकराव में केंद्र की ओर से पेश हुए मेहता ने इस अकाउंट को इस बात का सबूत बताया कि जनता को गुमराह करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का कितनी आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है।
मेहता ने तर्क दिया, ‘‘हमने यह अकाउंट बनाया है। यह सत्यापित है। अब मैं कुछ भी पोस्ट कर सकता हूं और लाखों लोग मानेंगे कि कर्नाटक के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कहा है।’’
उन्होंने ऑनलाइन स्तर पर जवाबदेही की कमी को रेखांकित करते हुए यह बात कही।
यह नाटकीय खुलासा एक्स कॉर्प की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) के तहत सरकारी अधिकारियों द्वारा विषयवस्तु को हटाने के लिए जारी आदेशों को चुनौती दी गई थी। एक्स कॉर्प का तर्क है कि केवल अधिनियम की धारा 69ए के तहत प्रक्रिया, आईटी नियमों के साथ, सामग्री को ब्लॉक करने का आदेश जारी करने की अनुमति देती है।
मेहता ने केंद्र की लंबे समय से चली आ रही चिंता को दोहराया, जो पहली बार ऐतिहासिक श्रेया सिंघल मामले में उठाई गई थी कि इंटरनेट उपयोगकर्ता स्वयं प्रकाशक, मुद्रक और प्रसारक की भूमिका निभाते हैं, जिससे नियामक निगरानी जटिल लेकिन आवश्यक हो जाती है।
उन्होंने कहा कि फर्जी खाते का इस्तेमाल कभी भी सामग्री पोस्ट करने के लिए नहीं किया गया और यह सिर्फ यह दिखाने के लिए बनाया गया था कि इस तरह की नकल मिनटों में कैसे हो सकती है।
एक्स कॉर्प का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केजी राघवन ने इस तरीके पर कड़ी आपत्ति जताई और तर्क दिया कि ऐसी सामग्री को औपचारिक रूप से रिकॉर्ड में दर्ज किए बिना पेश नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘आप बिना जांच या संदर्भ के इसे अदालत में नहीं ला सकते।’’
मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने राघवन की चिंता को स्वीकार किया, लेकिन स्पष्ट किया कि यह उदाहरण केवल दर्शाने के लिए प्रस्तुत किया गया था और इससे ‘एक्स’ के मामले के गुण-दोष पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘उनका कहना है कि ऐसे फर्जी अकाउंट बनाना बहुत आसान है।’’
न्यायाधीश ने प्रोटॉन मेल मामले में उठाई गई चिंताओं से भी तुलना की, जहां छेड़छाड़ की गई और अश्लील तस्वीरों वाले गुमनाम ईमेल सामूहिक रूप से भेजे गए थे। उन्होंने कहा, ‘‘गुमनाम होने की समस्या बनी हुई है।’’
भाषा वैभव नरेश
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