प्रयागराज (उप्र), 18 जुलाई (भाषा) भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी-इलाहाबाद) के निदेशक प्रोफेसर मुकुल शरद सुतावने ने शुक्रवार को कहा कि अनुसंधान को केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संस्कृति के रूप में देखा जाना चाहिए।
शोध फाउंडेशन द्वारा अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस संस्थान में आयोजित ‘शोधशाला’ नामक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को शुक्रवार को संबोधित करते हुए सुतावने ने कहा कि मानवता के कल्याण को केंद्र में रखकर शोध किया जाना चाहिए।
मुख्य वक्ता के तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आशीष चौहान ने कहा कि प्रयागराज में कुछ माह पूर्व आयोजित आध्यात्मिक महाकुंभ की भांति ही यह शोध कार्यशाला भी ज्ञान के मंथन का केंद्र बन रही है।
उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज भी भारत की कई कंपनियां नवाचार के बजाय केवल नकल कर रही हैं और अनुसंधान में उनका योगदान काफी कम है।
उन्होंने कहा ,‘‘ गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान के लिए जरूरी है कि हम संसाधनों के समुचित उपयोग के साथ मतभेदों से ऊपर उठकर कार्य करें।’’
इस अवसर पर शोध फाउंडेशन के राष्ट्रीय संयोजक अर्जुन आनंद ने कहा कि आज भारत का शैक्षणिक तंत्र औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित है तथा इससे बाहर निकलने के लिए आवश्यक है कि स्वयं से बदलाव की शुरुआत हो।
उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिनिधियों को शोध की सही दिशा और पद्धतियों से अवगत कराना है एवं शोध के लिए अकादमिक नेतृत्व तैयार करना है।
इस राष्ट्रीय कार्यशाला में भारत के सभी राज्यों से आए कुल 120 शोधार्थियों भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य अनुसंधान को अधिक प्रभावशाली बनाना, अकादमिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों के बीच समन्वय को सशक्त करना और युवा शोधार्थियों को नवीनतम शोध पद्धतियों एवं संसाधनों से परिचित कराना है।
भाषा राजेंद्र
राजकुमार
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