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Saturday, July 19, 2025

उच्चतम न्यायालय ने फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ के निर्माता के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की

Newsउच्चतम न्यायालय ने फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ के निर्माता के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की

नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने हिंदी फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ के निर्माता के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला खारिज करते हुए कहा कि प्राथमिकी दर्ज करके और पुलिस की मदद लेकर धन की वसूली नहीं की जा सकती।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने शिकायतकर्ता कुणाल जैन द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए निर्माता शैलेश आर सिंह की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की।

पीठ ने कहा, ‘‘विशेष रूप से पक्षों के बीच दीवानी विवाद में प्राथमिकी दर्ज करके और पुलिस की मदद लेकर धन की वसूली नहीं की जा सकती। यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’’

सिंह 2011 में आर माधवन और कंगना रनौत अभिनीत फिल्म के निर्माताओं में से एक थे।

सिंह की ओर से पेश वकील सना रईस खान ने कहा कि शिकायतकर्ता ने एक दीवानी विवाद को आपराधिक मामले में घसीटकर प्राथमिकी दर्ज कराई है।

खान ने कहा कि अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक अभियोजन का इस्तेमाल अभियुक्तों पर दबाव बनाने के लिए उत्पीड़न के माध्यम के रूप में न किया जाए।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को मध्यस्थता करने और मध्यस्थता से पहले शिकायतकर्ता को 25 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया है, जिससे परिणाम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और याचिका रद्द करने का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।

खान की दलीलों पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि जैन ने मौखिक समझौते के अनुसार कुछ धनराशि दी होगी और हो सकता है कि सिंह पर उनका कोई विशेष बकाया हो।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को आरोपी द्वारा देय राशि वसूलने के लिए शिकायतकर्ता की मदद करने का प्रयास क्यों करना चाहिए? यह दीवानी न्यायालय या वाणिज्यिक न्यायालय का काम है कि वह धन की वसूली के लिए दायर किए गए मुकदमे या किसी अन्य कार्यवाही में, चाहे वह मध्यस्थता अधिनियम, 1996 के तहत हो या आईबी कोड, 2016 के प्रावधानों के तहत हो, इस पर गौर करे।’’

शीर्ष अदालत ने आश्चर्य जताया कि उच्च न्यायालय यह क्यों नहीं समझ पाया कि यह विवाद दीवानी प्रकृति का है।

पीठ ने सिंह के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा, ‘‘उच्च न्यायालय से अपेक्षा की जाती है कि वह प्राथमिकी में लगाए गए कथनों और आरोपों के साथ-साथ रिकॉर्ड में मौजूद अन्य सामग्री, यदि कोई हो, पर भी गौर करे। ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय इस अदालत के फैसले में सुस्थापित सिद्धांतों को भूल गया है।’’

भाषा देवेंद्र अविनाश

अविनाश

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