बेंगलुरु, 21 जुलाई (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के नोटिस को रद्द करने संबंधी कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का सोमवार को स्वागत किया।
मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में इस फैसले को न्याय की दिशा में एक और कदम बताया गया तथा राजनीति से प्रेरित हस्तक्षेप को एक झटका बताया गया।
मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बयान में कहा गया, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने एमयूडीए मामले में पार्वती और बिरथी सुरेश को ईडी के नोटिस को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज कर दी गईं। अदालत ने ईडी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने के प्रति आगाह किया। अदालत ने कहा कि मामले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए। वरिष्ठ एकल न्यायाधीश के आदेश में कोई दोष नहीं पाए जाने के कारण इसे खारिज किया गया। न्याय की जीत हुई है और एमयूडीए मामले में ईडी का हस्तक्षेप समाप्त हो गया है।’’
एमयूडीए मामला मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती सिद्धरमैया को आवंटित भूमि में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है।
एमयूडीए मामले में आरोप है कि पार्वती से अधिगृहित जमीन के एवज में उन्हें मैसूर के एक पॉश इलाके में भूमि आवंटित की गई थी, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी उस भूमि की तुलना में अधिक था जिसे एमयूडीए ने ‘‘अधिगृहित’’ किया था।
एमयूडीए ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50 अनुपात 50 योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे। एमयूडीए ने पार्वती से अधिगृहित जमीन पर एक आवासीय परियोजना विकसित की थी।
विवादास्पद योजना के तहत एमयूडीए ने आवासीय परियोजना बनाने के लिए अधिगृहित अविकसित भूमि के बदले भूमि देने वालों को 50 प्रतिशत विकसित भूमि आवंटित की।
आरोप है कि मैसुरु तालुका के कसाबा होबली के कसारे गांव के सर्वेक्षण संख्या 464 में स्थित इस 3.16 एकड़ भूमि पर पार्वती का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।
लोकायुक्त और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों इस मामले की एक साथ जांच कर रहे हैं।
ईडी ने दोनों को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत नोटिस जारी किए थे, जिन्हें बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
ईडी ने विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) के माध्यम से उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
भाषा सुरभि नरेश
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