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Tuesday, July 22, 2025

न्यायालय ने महिला संरक्षण गृह की पूर्व अधीक्षक की जमानत रद्द करने का आदेश दिया

Newsन्यायालय ने महिला संरक्षण गृह की पूर्व अधीक्षक की जमानत रद्द करने का आदेश दिया

नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने यौन शोषण और मानसिक प्रताड़ना के कथित मामले में एक सरकारी महिला संरक्षण गृह की पूर्व अधीक्षक की जमानत सोमवार को यह कहते हुए रद्द कर दी कि ‘रक्षक’ ही ‘भक्षक’ बन गया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से एक ऐसा मामला है, जिसमें रक्षक की भूमिका में रखा गया व्यक्ति भक्षक बन गया।’

शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति (एससी) से ताल्लुक रखने वाली एक पीड़िता की याचिका स्वीकार कर ली और पटना उच्च न्यायालय की ओर से 18 जनवरी 2024 को पारित जमानत आदेश को रद्द कर दिया।

आदेश में कहा गया, ‘हम यह उल्लेख करना चाहेंगे कि प्रतिवादी दो पर लगाए गए आरोपों ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। प्रतिवादी दो महिला संरक्षण गृह की प्रभारी अधिकारी के रूप में तैनात थी और उसके पास वहां रहने वालों की सुरक्षा का दायित्व था, लेकिन वह उन असहाय और बेसहारा महिलाओं के यौन शोषण में लिप्त हो गई, जिन्हें उक्त संरक्षण गृह में रखा गया था।’

इस मामले में प्राथमिकी उच्च न्यायालय के संरक्षण गृह की महिलाओं की व्यथा बताने वाली एक खबर पर संज्ञान लेने के बाद दर्ज की गई थी। जांच की निगरानी उच्च न्यायालय ने की थी।

पूर्व अधीक्षक पर पीड़िता और अन्य महिलाओं को बेहोश करने वाले पदार्थ और इंजेक्शन देने का आरोप लगाया गया था, जिन्हें बाद में संरक्षण गृह के बाहर के लोगों द्वारा यौन उत्पीड़न के अलावा मानसिक यातना भी दी गई थी।

न्यायमूर्ति मेहता ने फैसले में कहा, ‘प्रतिवादी-आरोपी पर गंभीर आरोप हैं कि वह संरक्षण गृह में रहने वाली महिलाओं को प्रभावशाली लोगों को यौन सुख प्रदान करने के उद्देश्य से बाहर भेजती थी। इस मामले में प्राथमिकी उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप पर दर्ज की गई थी, जिसने संरक्षण गृह में रहने वाली महिलाओं द्वारा झेली जा रही यातनाओं का वर्णन करने वाली एक खबर का संज्ञान लिया था। जांच की निगरानी भी उच्च न्यायालय द्वारा की गई थी।’

पीठ ने कहा कि उसे जमानत पर रिहा करने से मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि गवाहों को धमकी मिलने की आशंका बनी रहेगी।

न्यायालय ने कहा, ‘एक बार जमानत दिए जाने के बाद उसे रद्द नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन जहां तथ्य इतने गंभीर हों कि वे न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर दें और जहां आरोपी को जमानत पर रिहा करने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, वहां अदालतें शक्तिहीन नहीं हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसे जमानत आदेशों को रद्द करें, ताकि न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।’

शीर्ष अदालत ने आरोपी को चार सप्ताह में निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और पटना प्रशासन से पीड़िता को उचित सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित करने को कहा।

भाषा आशीष पारुल

पारुल

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