नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को जम्मू-कश्मीर में एक पुलिस कांस्टेबल को ‘हिरासत में लेकर उसे अमानवीय यातना’ दिए जाने के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन को पीड़ित को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि कांस्टेबल को अवैध हिरासत में रखने के दौरान लगी चोटें उसे दी गई अमानवीय यातना को स्पष्ट करती हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी तथ्य इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला हैं… अनुच्छेद 21 का उल्लंघन न केवल स्पष्ट है, बल्कि गंभीर भी है।’’
उसने कहा कि कांस्टेबल को ‘साथी सरकारी अधिकारियों’ की हिरासत में जानलेवा चोटें आईं और बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई प्रभावी निवारण नहीं किया गया।
आदेश में कहा गया है, ‘‘ हिरासत में यातना के बर्बर कृत्यों (जिसके परिणामस्वरूप उसे पूरी तरह से नपुंसक बना दिया गया) के कारण पीड़ित और उसके परिवार को कुछ सांत्वना प्रदान करने के लिए हम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को अपीलकर्ता (पीड़ित) को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश देते हैं।’’
सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए पीठ ने कांस्टेबल की पत्नी की शिकायत और चिकित्सा साक्ष्य के आधार पर, 20 फरवरी 2023 से 26 फरवरी 2023 के बीच कुपवाड़ा के संयुक्त पूछताछ केंद्र में कांस्टेबल के साथ हिंसा और उसे अवैध रूप से हिरासत में रखने का उल्लेख किया।
आदेश में सात दिन के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया गया और अब तक की जांच के तहत एकत्रित सामग्री, जिसमें संबंधित दस्तावेज, मेडिकल रिकॉर्ड, सीसीटीवी फुटेज, फोरेंसिक साक्ष्य और केस डायरी शामिल हैं, को सीबीआई के सक्षम अधिकारी को ‘तुरंत सौंपने’ का निर्देश दिया गया।
पीठ ने कहा, ‘‘सीबीआई निदेशक इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन करेंगे जिसकी अध्यक्षता पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा।’’
उसने कहा कि हिरासत में यातना के लिए ज़िम्मेदार पाए गए पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
पीठ ने कुपवाड़ा पुलिस थाने के कांस्टेबल के खिलाफ आत्महत्या के प्रयास के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को भी खारिज कर दिया और कहा कि यह प्राथमिकी दोषी अधिकारियों को बचाने और पीड़ित के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी।
यह राशि उन अधिकारियों से वसूलने का निर्देश दिया गया है जिनके खिलाफ सीबीआई द्वारा जांच पूरी करने के बाद विभागीय कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया गया था।
पीठ ने केंद्रीय एजेंसी को 10 नवंबर तक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के 18 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ कांस्टेबल द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने, सीबीआई को जांच सौंपने और उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
कथित घटना के समय पुलिस कांस्टेबल बारामूला जिला पुलिस मुख्यालय में तैनात था।
इसमें उल्लेख किया गया है कि 17 फरवरी, 2023 को अपीलकर्ता को कुपवाड़ा के पुलिस उपाधीक्षक से एक संदेश मिला, जिसमें उसे मादक पदार्थों से जुड़े एक मामले की जांच के सिलसिले में 20 फरवरी को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था।
अपीलकर्ता ने दावा किया कि जैसे ही वह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पहुंचा, उसे हिरासत में ले लिया गया और छह दिनों तक हिरासत में क्रूर यातनाएं दी गईं।
उसने कहा कि बाद में उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाया गया।
अपीलकर्ता ने कहा कि जब वह अस्पताल में इलाज करा रहा था, तब 26 फरवरी, 2023 को उसके खिलाफ आत्महत्या के प्रयास के कथित अपराध के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
पीड़ित की पत्नी ने हिरासत में यातना के लिए प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए पुलिस से संपर्क किया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
भाषा संतोष अविनाश
अविनाश