तिरुवनंतपुरम, 21 जुलाई (भाषा) केरल के मुख्यमंत्री बनने से बहुत पहले, वी एस अच्युतानंदन भारतीय इतिहास के राजनीतिक प्रतिरोध के सबसे काले अध्यायों में से एक से गुजरे थे। उनके द्वारा झेले गए अनेक संघर्षों में एक क्षण उल्लेखनीय है – जब एक चोर, कोलप्पन अनजाने में उनकी जान बचाने वाला बन गया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के मुखपत्र ‘देशाभिमानी’ द्वारा प्रस्तुत विवरण के अनुसार, यह घटना 1946 में अलप्पुझा में पुन्नपरा-वायलार विद्रोह के क्रूर परिणाम के दौरान घटित हुई थी, जो त्रावणकोर राजशाही के दीवान सर सी पी रामास्वामी अय्यर द्वारा जन आंदोलन के कथित दमन के विरुद्ध था।
अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर पुलिस की कार्रवाई के दौरान, पार्टी के निर्देश पर अच्युतानंदन भूमिगत हो गए थे। स्थानीय प्रतिद्वंद्वियों के धोखे के कारण अंततः उन्हें कोट्टायम जिले के पूंजर स्थित एक ठिकाने से पकड़ लिया गया और पाला पुलिस हवालात में ले जाया गया।
इसके बाद जो हुआ वह यातनाओं से कम नहीं था।
एक कुख्यात अधिकारी के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों ने अच्युतानंदन को बेरहमी से पीटा और ई एम एस नंबूदरीपाद और पी कृष्ण पिल्लई जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं का पता पूछा। उन्होंने एक शब्द भी बोलने से इनकार कर दिया। उन्होंने अच्युतानंदन के हाथ बांध दिए, उनके पैरों को लाठियों से पीटा और अंत में उनके पैर में संगीन घोंप दी। भारी रक्तस्राव के कारण अच्युतानंदन बेहोश हो गए। उन्हें मरा हुआ समझकर पुलिस ने चुपचाप उनके शव को दफनाने का फैसला किया।
चूंकि उनकी गिरफ़्तारी का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं था, इसलिए उन्हें लगा कि वे उनकी मौत को छुपा सकते हैं। पुलिसकर्मियों ने उनके शव को उनकी धोती में लपेटा और पुलिस जीप की सीट के नीचे रख दिया।
उस समय हिरासत में मौजूद कोलप्पन नाम के एक चोर को पुलिसकर्मियों की मदद के लिए लगाया गया। योजना थी कि ‘शव’ को जंगल में कहीं दफ़ना दिया जाए। लेकिन जैसे ही जीप रात में आगे बढ़ी, कोलप्पन ने देखा — अच्युतानंदन सांस ले रहे थे।
कोलप्पन ने पुलिस को बताया कि जिस आदमी को वे मरा हुआ समझ रहे थे, वह असल में ज़िंदा है। इसके बाद पुलिस उन्हें पाला के सरकारी अस्पताल ले गई। उनकी जान बच गई – हालांकि चोटों से उबरने में उन्हें हफ़्तों तक इलाज कराना पड़ा।
इसके तुरंत बाद, उन्हें एक अन्य राजनीतिक मामले में फिर से गिरफ़्तार कर लिया गया और अलप्पुझा उप-जेल भेज दिया गया।
बाद में उन्होंने तिरुवनंतपुरम की पूजापुरा सेंट्रल जेल में कैदी संख्या 8957 के रूप में समय बिताया। उन्हें 1949 में रिहा कर दिया गया। अच्युतानंदन इस यातना के घाव जीवन भर सहते रहे – शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप से। उनका सोमवार को 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
भाषा आशीष अविनाश
अविनाश