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नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) अपने मुखर व्यक्तित्व के लिए जाने जाने वाले जगदीप धनखड़ ने शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका पर तीखा प्रहार किया और उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लगभग हर दिन राज्यसभा में विपक्ष के साथ उनका टकराव होता था।
धनखड़ (74) ने सोमवार को सभापति के रूप में राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण दिन बिताने के बाद स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इसी महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘ईश्वर’ ने चाहा तो वह ‘सही समय’ पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
इस वर्ष मार्च में कुछ दिनों के लिए उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था और कुछ अवसरों पर उनकी हालत ठीक नहीं दिखी थी, लेकिन संसद सहित सार्वजनिक कार्यक्रमों में वह अक्सर ऊर्जावान ही दिखे।
कार्यकाल समाप्त होने से लगभग दो वर्ष पहले धनखड़ ने ऐसे वक्त इस्तीफा दे दिया, जब दिन में राज्यसभा में सरकार के लिए घटनाक्रम आश्चर्यजनक रहा, क्योंकि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव का नोटिस उन्हें सौंपा गया और उन्होंने सदन में इसका उल्लेख किया।
यह घटनाक्रम सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक झटका है, जिसने लोकसभा में इसी तरह का नोटिस प्रायोजित किया था और विपक्ष को भी इसमें शामिल किया था।
धनखड़ 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार थे।
वह वीवी गिरि और आर वेंकटरमन के बाद, अपने कार्यकाल के दौरान इस्तीफा देने वाले भारत के तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। गिरि और वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
धनखड़ इतिहास में एकमात्र ऐसे उपराष्ट्रपति के रूप में भी जाने जाएंगे, जिनके खिलाफ विपक्ष ने उच्च सदन के सभापति के रूप में ‘पक्षपातपूर्ण’ आचरण अपनाने का आरोप लगाया और उन्हें हटाने के लिए नोटिस लाया।
नोटिस को उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। नोटिस को नज़रअंदाज़ करते हुए, धनखड़ ने इसे ‘जंग लगा हुआ’ सब्जी काटने वाला चाकू बताया था, जिसका इस्तेमाल बाईपास सर्जरी के लिए किया गया।
जनता दल और कांग्रेस से जुड़े रहे धनखड़ लगभग एक दशक के अंतराल के बाद 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे।
उन्होंने राजस्थान में जाट समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा देने सहित पिछड़ा वर्ग से संबंधित अन्य मुद्दों की वकालत की।
वर्ष 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनकी आश्चर्यजनक नियुक्ति ने उन्हें राजनीतिक सुर्खियों में वापस ला दिया, लेकिन वह राजनीति की हलचल से दूर नहीं रहे और राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ उनका अक्सर टकराव होता रहा।
धनखड़ ने राज्यसभा में व्यवधान से लेकर बिना चर्चा के विधेयक पारित होने के आरोपों तक, कई मुद्दों पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया।
उन्होंने खास तौर पर उन शीर्ष वकीलों पर निशाना साधा, जो विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा सदस्य भी हैं।
पेशे से वकील, धनखड़ ने न्यायपालिका पर भी निशाना साधा, खासकर शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर।
उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की कड़ी आलोचना की, जिसमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को पलटने की कोशिश की गई थी।
भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में उन्होंने दोनों सदनों द्वारा लगभग सर्वसम्मति से पारित कानून को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया था।
उन्होंने सांसदों की भी आलोचना करते हुए कहा था कि जब कानून को रद्द किया गया, तो सांसदों की तरफ से विरोध का एक स्वर तक नहीं उभरा।
वर्ष 1990 में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित धनखड़ ने मुख्य रूप से उच्चतम न्यायालय में वकालत की थी और उनके मुकदमेबाजी के क्षेत्र में इस्पात, कोयला, खनन और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता शामिल थे।
वकील के रूप में, वह अभिनेता सलमान खान से जुड़े काला हिरण मामले से जुड़े थे और उन्हें ज़मानत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
जुलाई 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का पद संभालने तक, उन्होंने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में विभिन्न मामलों में पैरवी की।
अध्यात्म और ध्यान में भी गहरी रुचि रखने वाले धनखड़ ने जनता दल के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और 1989 में बोफोर्स घोटाले के मुद्दे के तूल पकड़ने के बीच आयोजित लोकसभा चुनाव में राजस्थान के झुंझुनू से जीत दर्ज की।
धनखड़ ने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में संसदीय कार्य राज्य मंत्री के रूप में काम किया।
धनखड़ राजनीति में अपने शुरुआती सफर में देवीलाल से प्रभावित थे और बाद में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में शामिल हो गए।
राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्यकाल खत्म होने के बाद, धनखड़ ने अपने कानूनी करियर पर ध्यान केंद्रित किया और उच्चतम न्यायालय में वकील के रूप में प्रैक्टिस की।
उपराष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) उम्मीदवार के रूप में उनका नाम घोषित करते हुए, भाजपा ने उन्हें ‘किसान पुत्र’ बताया था।
राजनीतिक हलकों में यह कदम राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जाट समुदाय तक पहुंच बनाने के उद्देश्य से देखा गया था, जिसने जून 2020 में शुरू किए गए कृषि सुधार उपायों के खिलाफ साल भर चले किसानों के प्रदर्शन में बड़ी संख्या में भाग लिया था।
उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद, धनखड़ ने राष्ट्रीय राजधानी, हरियाणा और राजस्थान में किसानों के कई समूहों से मुलाकात की और उनसे कृषि से आगे बढ़कर खाद्य प्रसंस्करण और विपणन क्षेत्र में कदम रखने का आग्रह किया ताकि उनकी आय बढ़े।
एक मौके पर, उनके शब्द मोदी सरकार की तीखी आलोचना जैसे लग रहे थे।
दिसंबर 2024 में मुंबई में आईसीएआर-सीआईआरसीओटी के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित एक समारोह में बोलते हुए धनखड़ ने कहा था, ‘कृषि मंत्री जी, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया मुझे बताएं कि किसान से क्या वादा किया गया था? वादा पूरा क्यों नहीं किया गया? वादा पूरा करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?’
उन्होंने कहा, ‘पिछले साल भी एक आंदोलन हुआ था, इस साल भी एक आंदोलन हुआ है।’
धनखड़ ने कहा, ‘समय का पहिया घूम रहा है, हम कुछ नहीं कर रहे हैं। पहली बार मैंने भारत को बदलते देखा है। पहली बार मुझे एहसास हो रहा है कि भारत का विकास हमारा सपना नहीं, बल्कि हमारा लक्ष्य है। भारत दुनिया में इतनी ऊंचाई पर कभी नहीं था।’
धनखड़ ने किसानों से बात करते हुए कहा था, ‘जब ऐसा हो रहा है, तो मेरा किसान क्यों परेशान और पीड़ित है? किसान ही असहाय है।’
राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई, 1951 को जन्मे धनखड़ ने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में छात्रवृत्ति पर शिक्षा प्राप्त की।
भाषा आशीष पारुल
पारुल