(पियर्स फ़ॉर्स्टर और डेबी रोसेन, लीड्स विश्वविद्यालय)
लीड्स (ब्रिटेन), 22 जुलाई (द कन्वरसेशन) जलवायु से जुड़ी बुरी खबरें हर जगह हैं। अफ्रीका जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी परिस्थितियों से खासतौर पर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, जिससे जीवन और आजीविका अछूती नहीं रही है।
हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो रिकॉर्ड दर्ज होने के बाद से सबसे तेज गति से गर्म हो रही है। फिर भी, सरकारें कार्रवाई करने में धीमी गति से काम कर रही हैं।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर सभी पक्षों का वार्षिक सम्मेलन (कॉप 30) का आयोजन कुछ महीने में ही होना है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य सभी 197 देशों को इस साल फरवरी तक संयुक्त राष्ट्र को अपनी अद्यतन राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करनी थीं।
ये योजनाएं बताती हैं कि प्रत्येक देश कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय पेरिस समझौते के अनुरूप अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कैसे कटौती करेगा। यह समझौता सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को मानव-जनित वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध करता है।
सरकारों को अपनी नई अद्यतन राष्ट्रीय जलवायु कार्ययोजनाएं भी कॉप 30 में प्रस्तुत करनी होंगी और यह दर्शाना होगा कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल कैसे ढलने की योजना बना रही हैं।
लेकिन अब तक, केवल 25 देशों ने, जो वैश्विक उत्सर्जन के लगभग 20 प्रतिशत में हिस्सेदार हैं, अपनी योजनाएं प्रस्तुत की हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के रूप में जाना जाता है। अफ्रीका में, ये देश सोमालिया, जाम्बिया और जिम्बाब्वे हैं। इस प्रकार 172 देशों को अब भी अपनी योजना प्रस्तुत करनी है।
जलवायु परिवर्तन पर देशों की अल्पकालिक से मध्यम अवधि की प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करने में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे एक ऐसी दिशा भी प्रदान करते हैं जो व्यापक नीतिगत निर्णयों और निवेशों को सूचित कर सकती है। जलवायु योजनाओं को विकास लक्ष्यों के साथ जोड़कर 17.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है।
लेकिन यकीनन प्रस्तुत योजनाओं में से केवल एक, यूके की योजना ही पेरिस समझौते के अनुकूल है।
हम जलवायु वैज्ञानिक हैं, और हम में से एक (पियर्स फोर्स्टर) वैश्विक विज्ञान टीम का नेतृत्व करते हैं जो वार्षिक वैश्विक जलवायु परिवर्तन संकेतक रिपोर्ट प्रकाशित करती है। यह रिपोर्ट जलवायु प्रणाली की स्थिति का अवलोकन प्रदान करती है। यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के शुद्ध उत्सर्जन, वायुमंडल में इनकी सांद्रता, जमीन पर तापमान में वृद्धि और इस वृद्धि का कितना हिस्सा मानव द्वारा उत्पन्न हुआ है, की गणना पर आधारित है।
रिपोर्ट में यह भी पता चलता है कि अत्यधिक तापमान और वर्षा में कितनी वृद्धि हो रही है, समुद्र का स्तर कितना बढ़ रहा है, और ग्रह के तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने से पहले कितनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो सकती है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के भीतर रहना आवश्यक है।
हमारी रिपोर्ट दर्शाती है कि मानव-जनित वैश्विक तापमान 2024 में 1.36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। इसने औसत वैश्विक तापमान (मानव-जनित तापमान वृद्धि और जलवायु प्रणाली में प्राकृतिक परिवर्तनशीलता का एक संयोजन) को 1.52 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है। दूसरे शब्दों में, दुनिया पहले ही उस स्तर पर पहुंच चुकी है जहां यह इतनी गर्म हो गई है कि जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण प्रभावों से बच नहीं सकती। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम खतरनाक स्थिति में हैं।
हमारा खतरनाक रूप से गर्म ग्रह:
हालांकि पिछले साल वैश्विक तापमान बहुत ज्यादा था, लेकिन यह चिंताजनक रूप से असाधारण भी था। आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां करते हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगातार रिकॉर्ड उच्च स्तर के कारण कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता में वृद्धि हुई है।
इसका परिणाम यह है कि बढ़ता तापमान शेष कार्बन बजट (एक निश्चित समय सीमा के भीतर उत्सर्जित की जा सकने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा) को तेजी से खत्म करा रहा है। उत्सर्जन के मौजूदा स्तर को देखें तो यह तीन साल से भी कम समय में समाप्त हो जाएगा।
हमें इसका सीधा सामना करना होगा: 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के अंदर रहने का रास्ता लगभग बंद हो चुका है। अगर हम भविष्य में तापमान को फिर से नीचे ला भी पाते हैं, तो यह एक लंबी और कठिन राह होगी।
साथ ही, जलवायु परिवर्तन की चरम सीमाएं और भी तेज हो रही हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ, सबसे महत्वपूर्ण रूप से, लोगों पर भी दीर्घकालिक जोखिम बढ़ रहा है और लागत भी बढ़ रही हैं। अफ्रीकी महाद्वीप अब एक दशक से भी ज्यादा समय में अपने सबसे घातक जलवायु संकट का सामना कर रहा है।
विश्वसनीय आंकड़ों तक तेजी से पहुंच के बिना अर्थव्यवस्थाओं के संचालन की कल्पना करना असंभव होगा। जब शेयर की कीमतें गिरती हैं या विकास रुक जाता है, तो राजनेता और व्यापारिक नेता निर्णायक रूप से कार्य करते हैं। बिक्री या शेयर बाज़ार के बारे में पुरानी जानकारी कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
आगे क्या होना चाहिए:
जैसे-जैसे ज्यादा देश अपनी जलवायु योजनाएं विकसित कर रहे हैं, दुनिया भर के नेताओं के लिए जलवायु विज्ञान की कठोर सच्चाइयों का सामना करने का समय आ गया है।
सरकारों को विश्वसनीय जलवायु आंकड़ों तक तेजी से पहुंच की ज़रूरत है ताकि वे अद्यतन राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं बना सकें। राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को एक महत्वपूर्ण मोड़ लेने की ज़रूरत है।
द कन्वरसेशन नरेश वैभव
वैभव