नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि स्वास्थ्य के राज्य का विषय होने के कारण राज्यों की प्राथमिक जिममेदारी है कि वे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु और जीवनकाल हेतु वसीयत को अस्पताल प्रोटोकॉल में शामिल करके लागू करें।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा में कहा कि राज्यों की यह भी ज़िम्मेदारी है कि वे नैतिक सुरक्षा उपाय स्थापित करें।
नड्डा ने उच्चतम न्यायालय के 2018 के एक फैसले के आलोक में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु को लागू करने के लिए उठाए गए विशिष्ट उपायों को लेकर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में यह टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि 2018 के ‘कॉमन कॉज’ बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने अग्रिम निर्देशों के क्रियान्वयन और ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु के कार्यान्वयन के लिये विशिष्ट दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने ‘‘कॉमन कॉज’’ बनाम भारत संघ संबंधी विविध आवेदन संख्या 1699 में इन दिशानिर्देशों को क्रियान्वित करने संबंधी प्रक्रिया को 2023 में सरल बनाकर इनमें छूट दी है।
इन संशोधनों का उद्देश्य असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिए सिर्फ जीवित रखने वाले उपचार से इनकार करके सम्मानपूर्वक मृत्यु के अपने अधिकार का प्रयोग करने की प्रक्रिया को अधिक सुलभ बनाना था।
नड्डा ने कहा कि ‘स्वास्थ्य’ राज्य का विषय होने के कारण राज्यों एवं केंद्रशासित क्षेत्रों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु और जीवनकाल के लिये वसीयत को अस्पताल प्रोटोकॉल में शामिल करके लागू करें।
‘निष्क्रिय’ इच्छामृत्यु में मृत्यु ‘प्राकृतिक’ तरीके से होती है, क्योंकि रोगी को जीवित रखने के लिए आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं रोक दी जाती हैं।
भाषा अविनाश प्रशांत
प्रशांत