मुंबई, 23 जुलाई (भाषा) मुंबई में 11 जुलाई को लोकल ट्रेन धमाकों के मामले में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए गए 12 आरोपियों में से एक मोहम्मद अली शेख ने का कहना है कि पिछले 19 वर्षों में उन्होंने जो खोया वह ‘‘अमूल्य’’ था।
उन्होंने मामले में निचली अदालत के फैसले को ‘‘एकतरफा’’ बताया और कहा ‘‘सांच को आंच नहीं, सच हमेशा सच ही रहता है।’’
नागपुर केंद्रीय जेल में बंद शेख रिहाई के बाद मंगलवार शाम मुंबई स्थित अपने घर लौटे। लगभग 19 वर्षों बाद वे पहली बार अपने घर आए हैं।
उच्च न्यायालय ने सोमवार को इस बहुचर्चित मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा और यह ‘‘विश्वास करना कठिन है’’ कि अभियुक्तों ने यह अपराध किया।
मराठी समाचार चैनल को दिए गए एक साक्षात्कार में शेख ने कहा, ‘‘मैं अपने पिता और भाई के निधन के समय उनके जनाज़े और नमाज़ में शामिल नहीं हो सका। मेरी बड़ी बेटी की शादी भी इसी दौरान हुई, लेकिन मैं घर नहीं आ सका। यह मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है।’
उन्होंने कहा कि उनके पिता के निधन पर उच्च न्यायालय ने चार दिन की पैरोल दी थी, लेकिन दो लाख रुपये की जमानत राशि तय की गई थी, जिसे वह अदा नहीं कर सके। इसी कारण वह उस समय भी घर नहीं आ पाए। बेटी की शादी के समय भी उन्होंने पैरोल के लिए आवेदन नहीं किया।
शेख ने कहा ‘‘मैंने जो खोया, वह कोई मुआवज़े से नहीं मिल सकता। यह बहुत बड़ी और अपूरणीय क्षति है।’’
उन्होंने बताया कि अभी वे किसी मुआवज़े की मांग नहीं कर रहे हैं और उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई के बाद इस पर विचार करेंगे। महाराष्ट्र सरकार ने पहले ही उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।
शेख ने कहा, ‘‘हमें उच्चतम न्यायालय पर पूरा भरोसा है। हम सभी निर्दोष हैं और हमें वहां भी न्याय मिलेगा।’’
उन्होंने सत्र अदालत के फैसले को एकतरफा बताते हुए कहा, ‘‘सत्र अदालत ने केवल अभियोजन पक्ष की दलीलों को स्वीकार किया, हमारी बात को दरकिनार कर दिया गया। यह फैसला आंखें मूंदकर सुनाया गया था। लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने इसे ठीक किया और न्याय दिया।’’
शेख ने कहा ‘‘जब सत्र अदालत ने हमें दोषी ठहराया, तब भी हमें भरोसा था कि हम उच्च न्यायालय से बरी हो जाएंगे।’’
उन्होंने कहा ‘‘सांच को आंच नहीं। हम सब बेगुनाह हैं।’’
उन्होंने दावा किया कि अगर कोई उच्च न्यायालय का फैसला पढ़ेगा तो समझ जाएगा कि मामला किस तरह से गढ़ा गया था।
शेख ने कहा कि जब 11 जुलाई, 2006 को मुंबई में सिलसिलेवार धमाके हुए, तब वह शिवाजीनगर स्थित अपने घर में थे। ‘‘हमारे परिवार के 14 सदस्य एक ही मकान में रहते थे – हम निचली मंजिल पर और मेरे भाइयों के परिवार ऊपरी मंजिल पर रहते हैं।’’
उनका दावा है कि उन्होंने और उनके परिवार ने इलाके में अश्लील वीडियो दिखाने वाले पार्लरों और जुए के अड्डों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, जिससे पुलिस उनसे नाराज़ हो गई और उन्हें ‘‘बड़े मामले में फंसाने की धमकी’’ दी गई।
उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें 31 जुलाई से 29 सितंबर 2006 तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और परिवार को यह कहकर वकील न रखने की सलाह दी गई थी, कि उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन फिर उन्हें 29 सितंबर 2006 को गिरफ्तार कर लिया गया।
शेख पर आरोप था कि उन्होंने पाकिस्तान से भारत में छिप कर आए लोगों की मदद से अपने घर पर बम तैयार किए थे। उन पर स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का सदस्य होने का भी आरोप था और पुलिस ने उनसे कई बार पूछताछ की। मुंबई में 2002-03 के विस्फोटों के बाद भी उनसे कई बार पूछताछ की गई।
भाषा मनीषा शोभना
शोभना