मुंबई, 23 जुलाई (भाषा) मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनों में 2006 में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के मामले में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के बाद पीड़ितों ने इस फैसले पर गहरा आघात और निराशा जताई है।
पीड़ितों का कहना है कि न्याय मिलने की उनकी 19 वर्षों की प्रतीक्षा अब और लंबी हो गई है।
पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट और विस्फोट के समय छात्र रहे चिराग चौहान ने कहा, “यह बेहद दुखद है। न्याय की हत्या हो गई।”
अब व्हीलचेयर का सहारा लेने वाले चौहान उस समय 21 वर्ष के थे जब 11 जुलाई 2006 को पश्चिम रेलवे की एक लोकल ट्रेन में खार और सांताक्रूज़ स्टेशनों के बीच हुए बम धमाके में उन्हें रीढ़ की गंभीर चोट लगी थी।
चौहान ने कहा कि उन्होंने दोषियों को माफ कर आगे बढ़ने का प्रयास किया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर उस समय नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होते, तो संभवतः न्याय मिला होता। उन्होंने मई में ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के ज़रिए भारत की जवाबी कार्रवाई का भी हवाला दिया।
बंबई उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में “पूरी तरह विफल” रहा और “विश्वास करना कठिन है कि अभियुक्तों ने अपराध किया”।
एक अन्य पीड़ित, पश्चिम रेलवे में कार्यरत महेन्द्र पितले (52) ने भी फैसले से असहमति जताई। विस्फोट में अपना बायां हाथ खो बैठे पितले ने कहा, “अगर ये आरोपी दोषी नहीं हैं, तो फिर यह भयावह कृत्य किसने किया? सिर्फ पुलिस और न्यायपालिका ही जानते हैं।”
मुंबई की सात लोकल ट्रेनों में 11 जुलाई 2006 को हुए विस्फोटों में 180 से अधिक लोगों की जान गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। यह देश के सबसे भीषण आतंकी हमलों में से एक था।
पालघर जिले के विरार निवासी बागवानी ठेकेदार हरीश पवार (44) ने फैसले को ‘‘चौंकाने वाला’’ बताते हुए कहा ‘‘आरोपियों को न्याय मिला, लेकिन उन लोगों को नहीं मिला जिन्होंने अपने परिवारजनों को या अपने अंग गंवाए।’’
प्रतिदिन उपनगरीय लोकल ट्रेन से दक्षिण मुंबई स्थित अपने काम पर जाने वाले पवार हमलों के दौरान प्रथम श्रेणी के एक डिब्बे में यात्रा कर रहे थे जब उसमें विस्फोट हुआ।
पवार ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा ‘‘धमाके के दृश्य आज भी आंखों के सामने ताजा हो जाते हैं। डिब्बे की दीवारों पर खून बिखरा था, कई शव पड़े थे, कुछ लोग तड़प रहे थे, कुछ निःशब्द पड़े थे।’’
ठाणे में संवाददाताओं से बात करते हुए हरशल भालेराव (23) के माता-पिता यशवंत और सगुना भालेराव ने भी फैसला सुनकर गहरा दु:ख व्यक्त किया। यशवंत भालेराव ने कहा ‘‘ऐसा लग रहा है जैसे हमारा बेटा दोबारा मर गया हो।’’
विस्फोट वाले दिन हरशल अंधेरी स्थित एक निजी कंपनी में नौकरी के पहले दिन काम करने के बाद उसी शाम विरार जाने वाली लोकल ट्रेन में सवार हुए, तभी धमाका हो गया।
यशवंत भालेराव ने कहा ‘‘मैं भी उसी ट्रेन में था, लेकिन दूसरे डिब्बे में। आवाज़, चीखें और अफरा-तफरी आज भी याद है। जब मैं हर जगह – पटरियों से लेकर अस्पतालों तक – उसे ढूंढ रहा था। अंत में उसका शव ही मिला।’’
भालेराव परिवार ने बाद में अपने इकलौते बेटे की याद में वसई में एक घर बनवाया, जिसका नाम ‘7/11 हरशल स्मृति’ रखा गया। यशवंत ने कहा, ‘‘यह सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक उम्मीद थी कि कभी न कभी न्याय मिलेगा। लेकिन अब हमें लगता है कि हमें धोखा मिला।’’
आंसुओं के बीच रुंधे गले से सगुना भालेराव ने कहा, ‘‘26/11 के आतंकवादी को फांसी दी गई, फिर हमारे मामले को क्यों भुला दिया गया? क्या हमारे बच्चे न्याय के लायक नहीं थे? अब हमारे पास कुछ नहीं बचा – न बेटा, न न्याय।’’
यशवंत ने कहा, ‘‘देश आगे बढ़ गया, सुर्खियां मिट गईं। लेकिन हम हर दिन इस दर्द को जीते रहे। और अब हमसे कहा जा रहा है कि कोई दोषी नहीं था?’’
एक पीड़ित ने सवाल उठाया, ‘‘अगर बरी किए गए लोग दोषी नहीं हैं, तो फिर असली दोषी कौन हैं और उन्हें कब सज़ा मिलेगी? या इसमें भी 19 साल लगेंगे?’’
भाषा मनीषा माधव
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