(अमनप्रीत सिंह)
रोहतक (हरियाणा), 23 जुलाई (भाषा) राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) की निलंबित खिलाड़ियों की सूची पर नजर डालने से पता चलता है कि भारत में सभी खेलों में कुश्ती में डोपिंग के मामले दूसरे सबसे अधिक हैं।
इनकी संख्या 19 है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इनमें से पांच नाबालिग हैं। अगर डोपिंग का खतरा कुश्ती में जूनियर स्तर तक फैल गया है, तो समय आ गया है कि हितधारक जाग जाएं और स्थिति बिगड़ने से पहले सुधारात्मक उपाय करना शुरू कर दें।
अंडर-23 विश्व चैंपियन और ओलंपियन रीतिका हुड्डा के अस्थायी निलंबन ने एक बार फिर भारतीय कुश्ती में डोपिंग को चर्चा का विषय बना दिया है।
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय पहलवानों विशेष कर जूनियर खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक रहा है और कुछ लोगों की गलतियों के कारण इन खिलाड़ियों पर आंच नहीं आनी चाहिए।
भारतीय टीम विशेषकर महिला टीम ने हाल ही में जापान और अमेरिका जैसी टीमों को हराकर जूनियर टीम चैंपियनशिप जीती। बीच-बीच में विवादों में घिरे रहने के बावजूद कुश्ती का ग्राफ ओलंपिक खेल के रूप में ऊपर बढ़ता रहा है।
चाहे विश्व चैंपियनशिप हो, एशियाई खेल हों, एशियाई चैंपियनशिप हो या ओलंपिक, भारतीय पहलवान अब इन प्रतिष्ठित टूर्नामेंटों में पदक के दावेदार के रूप में उतरते हैं।
इससे खिलाड़ियों को आर्थिक लाभ भी हुआ और उन्हें सरकारी नौकरियां भी मिली। इसने खिलाड़ियों और उनके माता-पिता की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाला है।
ऐसी स्थिति में कुछ खिलाड़ियों ने तुरंत सफलता हासिल करने और जागरूकता की कमी के कारण डोपिंग का गलत रास्ता चुना।
डोपिंग के मामले में मुकदमा लड़ रहे एक नाबालिग पहलवान के पिता ने कहा, ‘‘मैं खेल जगत से नहीं आया हूं, इसलिए हमें यह पता नहीं है कि सही कदम क्या होगा।‘‘
एक व्यवसायी ने स्वीकार किया, ‘‘एक प्रतिष्ठित पहलवान ने मेरी बेटी से कहा कि एक स्थानीय पोषण आपूर्तिकर्ता (नाम गुप्त रखा गया है) से सप्लीमेंट लेने के बाद उसका प्रदर्शन बेहतर हुआ है और उसे भी उससे सप्लीमेंट लेना चाहिए। कोच मंदीप सैनी ने हमें अनधिकृत लोगों से सप्लीमेंट न लेने की चेतावनी दी थी, फिर भी हम उनके झांसे में आ गए।’’
पीटीआई ने हरियाणा में कई परिवारों से बात की और पाया कि राज्य में विशेषकर रोहतक में कई तथाकथित स्थानीय पोषण आपूर्तिकर्ता अभिभावकों और खिलाड़ियों को प्रदर्शन में सुधार का वादा करके गुमराह कर रहे हैं।
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) से जब इस बारे में संपर्क किया गया तो उसने पुष्टि की सप्लीमेंट की अनधिकृत बिक्री की बात उनके संज्ञान में आई है।
महासंघ के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘ये लोग बिना बिल के सब कुछ बेचते हैं। अगर ये पहलवान नाडा के सामने बिल पेश कर सकें, तो वे सप्लीमेंट्स को परीक्षण के लिए भेज सकते हैं और अगर प्रतिबंधित पदार्थ पाए जाते हैं, तो पहलवान बेदाग निकलेंगे।‘‘
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन समस्या यह है कि उनके पास कभी बिल नहीं होता। हम अपने पहलवानों को अनधिकृत लोगों से सप्लीमेंट्स न लेने की सलाह देते हैं, लेकिन प्रत्येक पहलवान पर निगरानी रखना संभव नहीं है।‘‘
यहां तक पता चला है कि सप्लीमेंट उपलब्ध कराने वाले किसी खिलाड़ी के सफल हो जाने पर उसे प्रायोजित करने का लालच भी देते हैं ताकि अन्य खिलाड़ियों में विश्वास पैदा किया जा सके।
रोहतक का सर छोटू राम स्टेडियम एक प्रतिष्ठित केंद्र है जहां से लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान निकले हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक का है।
इस केंद्र की अपनी एक प्रतिष्ठा है और जब से रीतिका का नाम डोपिंग में आया है, तब से यहां का माहौल गमगीन है।
इस केंद्र को संचालित करने वाले मंदीप ने कहा, ‘‘मैंने अपने पहलवानों को कभी ग्लूकोस लेने की भी सलाह नहीं दी। यहां 80 लड़कियां हैं और आप किसी से भी पूछ सकते हैं। लेकिन जब वह बाहर जाते हैं तो हमें कैसे पता चलेगा कि वह क्या कर रही है और क्या खा रही हैं।’’
इसके अलावा एक अन्य कारण पिछले कुछ वर्षों में नियमित रूप से राष्ट्रीय शिविरों का आयोजन नहीं होना भी रहा जहां खिलाड़ियों को डोपिंग को लेकर भी प्रशिक्षित किया जाता है।
भाषा
पंत सुधीर
सुधीर