कोलकाता, 23 जुलाई (भाषा) अर्थशास्त्री और पश्चिम बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा ने बुधवार को आरोप लगाया कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के बेरोजगारी के आधिकारिक आंकड़े भारत में वास्तविक बेरोजगारी को काफी कम करके दिखाते हैं।
मुख्यमंत्री के प्रधान मुख्य सलाहकार मित्रा ने दावा किया कि केंद्र सरकार के आंकड़े – विशेष रूप से आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) – वर्ष 2023-24 के लिए बेरोजगारी को 4.9 प्रतिशत तक कम बताकर देशवासियों को गुमराह कर रहे हैं।
अर्थशास्त्री ने एक विदेशी एजेंसी (रॉयटर्स) द्वारा हाल में किए गए सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि 70 प्रतिशत प्रमुख वैश्विक अर्थशास्त्रियों ने भारत के बेरोजगारी के आधिकारिक आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है और दावा किया है कि ये आंकड़े बेरोजगारी संकट की वास्तविक गंभीरता को ‘छिपा’ रहे हैं।
मित्रा ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘यह चौंकाने वाला है कि मोदी सरकार का बेरोजगारी पर सर्वेक्षण (पीएलएफएस) नागरिकों को यह विश्वास दिलाने में गुमराह कर रहा है कि भारत में बेरोजगारी चार प्रतिशत या उसके आसपास है। हाल में ‘रॉयटर्स’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में दुनिया के 70 प्रतिशत प्रमुख अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत सरकार का आधिकारिक बेरोजगारी डेटा न केवल गलत है, बल्कि देश में बेरोजगारी की गंभीरता को चतुराई से ‘छिपाता’ है।’
उन्होंने पीएलएफएस मानदंडों का उल्लेख करते हुए कहा कि अवैतनिक पारिवारिक श्रम या प्रति सप्ताह केवल एक घंटे की आर्थिक गतिविधि में संलग्न होना भी किसी व्यक्ति को ‘रोजगार’ के रूप में योग्य बनाता है, जिससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगारी की सूची से बाहर हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार के 4.9 प्रतिशत बेरोजगारी अनुमान के विपरीत, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने यह दर 8.05 प्रतिशत बताई है, जो लगभग दोगुनी है।
मित्रा के अनुसार सीएमआईई के आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि बेरोजगार भारतीयों की कुल संख्या करीब चार करोड़ से अधिक है और यह आंकड़ा स्पेन की पूरी जनसंख्या के बराबर है।
मित्रा ने यह भी कहा कि अधिक चिंता की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार भारत के 83 प्रतिशत बेरोजगार युवा हैं, जो रोजगार में पीढ़ीगत संकट को रेखांकित करता है।
उन्होंने केंद्र सरकार से बढ़ते ‘विश्वास की कमी’ को दूर करने का आह्वान करते हुए कहा कि सच्चाई को छिपाया नहीं जाना चाहिए।
भाषा आशीष प्रशांत
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