नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) सरकार ने बृहस्पतिवार को संसद में कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की वर्तमान में कोई योजना नहीं है।
सरकार ने यह भी कहा कि उसने संविधान की प्रस्तावना से इन दोनों शब्दों को हटाने के लिए ‘‘औपचारिक रूप से कोई कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया’’ नहीं शुरू की है।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक क्षेत्रों में इस पर चर्चा या बहस हो सकती है, लेकिन इन शब्दों के संशोधन के संबंध में ‘‘सरकार द्वारा किसी औपचारिक फैसले या प्रस्ताव की घोषणा नहीं की गई है।’’
उन्होंने कहा कि सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या (प्रस्तावना से) उन्हें हटाने की वर्तमान में कोई योजना या इरादा नहीं है। मंत्री ने कहा कि प्रस्तावना में संशोधन के संबंध में किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सर्व-सम्मति की आवश्यकता होगी, लेकिन अब तक सरकार ने इन प्रावधानों में बदलाव करने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं शुरू की है।
मेघवाल ने बताया कि नवंबर 2024 में, उच्चतम न्यायालय ने 1976 के संशोधन (42वां संविधान संशोधन) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को यह उल्लेख करते हुए खारिज कर दिया था कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक विस्तारित है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में ‘समाजवादी’ एक कल्याणकारी राज्य (शासन) को व्यक्त करता है और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता है वहीं ‘पंथनिरपेक्ष’ संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है।
कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए माहौल के बारे में मेघवाल ने कहा कि कुछ समूह हो सकता है कि अपनी राय व्यक्त कर रहे हों, या इन शब्दों पर पुनर्विचार की वकालत कर रहे हों।
उन्होंने कहा कि ऐसी गतिविधियां, मुद्दे पर सार्वजनिक विमर्श का माहौल तो बना सकती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सरकार के आधिकारिक रुख या कार्रवाई को प्रतिबिंबित करे।
भाषा अविनाश सुभाष
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