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Saturday, July 26, 2025

गेमिंग ऐप में चैट सुविधा का इस्तेमाल आतंकवादी समूह आपस में संवाद के लिए कर रहे : अधिकारी

Newsगेमिंग ऐप में चैट सुविधा का इस्तेमाल आतंकवादी समूह आपस में संवाद के लिए कर रहे : अधिकारी

(सुमीर कौल)

श्रीनगर, 25 जुलाई (भाषा) पबजी जैसे ऑनलाइन खेल में गुमनाम या अन्य साथियों के साथ बातचीत की आवश्यकता होती है और अब इन खेलों की यही विशेषता आतंकवादी समूहों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जम्मू-कश्मीर में अपने सदस्यों से संवाद करने के प्रमुख संचार माध्यम में बदल गई है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

अधिकारियों के मुताबिक, सीमा पार सक्रिय आतंकवादी समूह सोशल मीडिया और संचार के पारंपरिक माध्यमों को दरकिनार कर सुरक्षा एजेंसियों की नज़र से बचने की कोशिश करते हैं, इसलिए वे इस आभासी युद्धक्षेत्र को असली में युद्ध के संवाद के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे चार मामलों की पहचान की गई है।

अधिकारियों ने बताया कि एक मामले में, एक नाबालिग लड़के को सीमा पार बैठा उसका खेल में साथी कट्टरपंथी बना रहा था। पूरे परिवार की उचित परामर्श के बाद लड़के को उसके माता-पिता को सौंप दिया गया।

अधिकारियों ने बताया कि गेमिंग चैट ऐप्लिकेशन खिलाड़ियों को ऑनलाइन गेम खेलने की आड़ में वास्तविक समय में एक-दूसरे के साथ संवाद करने की सुविधा देता है, लेकिन उन्होंने उस खेल का नाम नहीं बताया और न ही कि इसका कैसे इस्तेमाल हो रहा है।

उन्होंने बताया कि ये ऐप्लिकेशन खिलाड़ियों के बीच टीमवर्क, रणनीतिक चर्चा और सामाजिक संपर्क को बढ़ाने के लिए ध्वनि, वीडियो और लिखित संचार की सुविधा प्रदान करते हैं। इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।

अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी समूह में भर्ती के लिए संभावित सदस्य की पहचान खेल के दौरान की जाती है।

गेमिंग ऐप्लिकेशन उपयोगकर्ता संचार की सुरक्षा के लिए कूटबद्धता का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा रहे हैं, लेकिन सुरक्षा का स्तर काफ़ी अलग-अलग होता है। इसलिए, कुछ गेम इन-गेम ध्वनि चैट के लिए मौलिक कूटबद्धता का इस्तेमाल करते हैं, जबकि कुछ लिखित और ध्वनि संदेश के लिए अधिक गूढ कूटबद्ध संदेश की सुविधा प्रदान करते हैं।

अधिकारियों ने बताया कि इनमें से कई गेमिंग ऐप हालांकि भारत में प्रतिबंधित हैं, फिर भी इन्हें वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का इस्तेमाल करके अवैध रूप से डाउनलोड किया जाता है। वीपीएन इंटरनेट प्रोटोकॉल पता को छिपाकर इंटरनेट पर एक सुरक्षित और कूटबद्ध कनेक्शन की सुविधा देता है। इससे ऑनलाइन गतिविधि का पता लगाना और आंकड़े एकत्र करना मुश्किल हो जाता है।

अधिकारियों ने बताया कि पहले भी आतंकवादी समूहों और उनके पाकिस्तानी आकाओं ने व्हाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप का इस्तेमाल बंद कर दिया था और एक-दूसरे से संवाद करने के लिए दूसरे ऐप्स का इस्तेमाल करने लगे थे। उन्होंने बताया कि इनमें से एक तुर्की की कंपनी द्वारा विकसित ऐप भी शामिल है, जिसका इस्तेमाल आतंकवादी समूहों के आकाओं और घाटी में उनके संभावित रंगरूटों द्वारा किया जा रहा है।

अधिकारियों के मुताबिक नए ऐप में सबसे धीमे इंटरनेट कनेक्शन के साथ काम करने की क्षमता है। यह 2000 के दशक के अंत में प्रयुक्त एन्हांस्ड डेटा फॉर ग्लोबल इवोल्यूशन (ईडीजीई) या टूजी पर काम कर सकता है।

केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद पूरे राज्य में इंटरनेट सेवा निलंबित कर दी थी।

अधिकारियों ने बताया कि सभी कूटबद्धता और उन्हें वापस संदेश में प्राप्त करने की प्रक्रिया सीधे उपकरण पर होते हैं, इसलिए किसी भी समय तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ये नए ऐप एन्क्रिप्शन एल्गोरिथम आरएसए-2048 का उपयोग करते हैं, जिसे सबसे सुरक्षित कूटबद्ध मंच के रूप में अपनाया गया था।

आरएसए एक अमेरिकी नेटवर्क सुरक्षा और प्रमाणीकरण कंपनी है, जिसकी स्थापना 1982 में अमेरिका में जन्मे रॉन रिवेस्ट और लियोनार्ड एडलमैन और इज़राइली मूल के आदि शमीर ने की थी। आरएसए का संक्षिप्त नाम दुनिया भर में कूट प्रणाली की आधारशिला के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

अधिकारियों ने बताया कि घाटी में युवाओं को चरमपंथी बनाने के लिए आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले एक नये मैसेजिंग ऐप के लिए फोन नंबर या ईमेल की भी जरूरत नहीं होती है, जिससे उपयोगकर्ता की पूरी तरह से पहचान गुप्त रहती है।

आतंकी गतिविधियों पर नज़र रखने की यह नई चुनौती ऐसे समय में आई है, जब घाटी में सुरक्षा एजेंसियां वर्चुअल सिम कार्ड के खतरे से जूझ रही हैं। आतंकी समूह पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क करने के लिए इनका इस्तेमाल तेज़ी से कर रहे हैं। वर्चुअल सिम कार्ड किसी विदेशी सेवा प्रदाता द्वारा बनाए जाते हैं।

इस प्रौद्योगिकी में, कंप्यूटर एक टेलीफोन नंबर तैयार करता है और उपयोगकर्ता को इसका उपयोग करने के लिए अपने स्मार्टफोन पर सेवा प्रदाता से एक ऐप्लिकेशन डाउनलोड करना होता है।

इस प्रौद्योगिकी की पैठ 2019 में तब सामने आई, जब पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले पर हमले में जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर द्वारा इस्तेमाल किए गए वर्चुअल सिम के बारे में एक सेवा प्रदाता से जानकारी मांगने के लिए अमेरिका को अनुरोध भेजा गया। इस हमले में 40 जवानों की जान चली गई थी।

अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए)और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की विस्तृत जांच में खुलासा हुआ कि अकेले पुलवामा हमले में 40 से ज़्यादा वर्चुअल सिम कार्ड इस्तेमाल किए गए थे। उन्होंने आशंका जताई कि घाटी के साइबरस्पेस में शायद और भी कई सिम कार्ड मौजूद हैं।

भाषा धीरज दिलीप

दिलीप

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