नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तराखंड सरकार और उसके लोक सेवा आयोग से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें दृष्टिबाधित और चलने-फिरने में अक्षम व्यक्तियों को न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल न करने को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने श्रव्या सिंधुरी की याचिका पर उत्तराखंड सरकार, लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नए नोटिस जारी किए।
पीठ को बताया गया कि पूरी तरह से दृष्टिबाधित याचिकाकर्ता ने न्यायिक परीक्षाओं के लिए दृष्टिहीनों और चलने-फिरने में अक्षम लोगों को पात्रता से बाहर रखने के फैसले को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पूछा, ‘‘यह सरकार की ओर से ये बहुत गलत है, बहुत गलत है।’’
पीठ ने राज्य को यह देखते हुए नोटिस जारी किया कि परीक्षा 31 अगस्त से शुरू होनी थी और पूर्व नोटिस के बावजूद कोई भी उपस्थित नहीं हुआ।
शीर्ष अदालत ने तीन मार्च को इसी तरह के एक मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और कहा था कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। उसने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया था जो उन्हें न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर से वंचित करते थे।
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को जिस याचिका पर नोटिस जारी किया, उसमें आरोप लगाया गया है कि 16 मई के भर्ती विज्ञापन में संवैधानिक अधिकारों और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी) के तहत वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है।
याचिका में पीडब्ल्यूबीडी की पात्रता को केवल चार विशिष्ट श्रेणियों तक सीमित करने को भी चुनौती दी गई है : कुष्ठ रोग से ठीक हुए व्यक्ति, तेजाब हमले के पीड़ित, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और बौनापन तथा परिणामस्वरूप कई अन्य विकलांगताओं जैसे दृष्टिहीनता और चलने-फिरने में असमर्थता को इससे बाहर रखा गया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि भर्ती अधिसूचना में न केवल पात्रता को गैरकानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है, बल्कि मूल निवासी की आवश्यकता भी लागू की गई है, जिससे बेंचमार्क दिव्यांगता वाले उन व्यक्तियों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है जो उत्तराखंड के निवासी नहीं हैं।
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गोला नरेश
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