नयी दिल्ली, 28 जुलाई (भाषा) एक दशक पहले, एक अधिक वजन का स्कूली छात्र झज्जर के एक स्थानीय स्टेडियम में अपने परिवार के कहने पर कुछ किलो वजन कम करने और फिटनेस बेहतर करने आया था।
आज 21 वर्षीय हितेश गुलिया (70 किग्रा) अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी सर्किट में सबका ध्यान खींच रहे हैं। उन्होंने ब्राजील और कजाखस्तान में आयोजित विश्व कप में क्रमशः स्वर्ण और रजत पदक जीते।
हितेश को वह पल अच्छी तरह याद है जब उनकी यात्रा की शुरुआत हुई थी।
हितेश ने पीटीआई से कहा, ‘‘जब हम 2015 में अपने पैतृक गांव (जहांगीरपुर) से झज्जर शहर आए तो वहां एक स्थानीय स्टेडियम था। मेरे माता-पिता ने मुझे वहां जाने, थोड़ा दौड़ने और फिट रहने के लिए कहा क्योंकि मैं चौथी कक्षा में था लेकिन मेरा वजन 50-55 किग्रा था।’’
इस मुक्केबाज ने कहा कि उस समय उन्हें पेशेवर रूप से इस खेल को अपनाने की कोई इच्छा नहीं थी।
उन्होंने कहा, ‘‘स्टेडियम में मैं वहां गया जहां मुक्केबाजी हो रही थी और फिट होने के लिए ट्रेनिंग में शामिल हो गया। मेरा मुक्केबाजी में करियर बनाने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन फिर एक दिन कोच ने मुझे दस्ताने दिए और मुकाबला करने के लिए कहा।’’
मुक्केबाजी की ट्रेनिंग के शुरुआती चरणों में बहुत कम या बिल्कुल भी अभ्यास नहीं होता क्योंकि मुक्केबाज मुख्य रूप से रिंग से दूर सहनशक्ति बढ़ाने और लचीलेपन को बेहतर करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
हितेश ने कहा, ‘‘मैंने अपने विरोधी को मुक्के जड़े और कोच को मेरे अंदर क्षमता नजर आई। उसके बाद मुझे अपने राज्य के लिए एक जिला-स्तरीय टूर्नामेंट के लिए चुना गया। मैं पहले मुकाबले में हार गया लेकिन मेरे परिवार को लगा कि मैं मुक्केबाजी कर सकता हूं।’’
अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए एक निजी ट्रैवल कंपनी में टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम कर चुके हितेश के पिता सत्यप्रकाश ने अपने बेटे की सफलता में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
कम आय के बावजूद पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हितेश ने कभी अपने परिवार के संघर्षों का बोझ महसूस नहीं किया और चुपचाप संघर्ष करने के लिए अपने पिता को श्रेय देते हैं।
हितेश ने कहा, ‘‘पापा एक कंपनी के लिए कैब चलाते थे। मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि हम पैसों का प्रबंधन कैसे करते थे, बस इतना है कि मेरे पिता ने बहुत त्याग किया है। घुटने की समस्या होने के बावजूद वह डबल शिफ्ट में काम करते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे कभी कुछ नहीं बताया और ना ही पैसों की चिंता करने दी। वह हमेशा कहते थे, ‘तू मेरे पर छोड़ दे, फिक्र ना कर।’ अगर वह ना होते तो मैं यहां नहीं होता।’’
हितेश के के दो और भाई तथा दो बहन हैं।
हितेश के करियर का निर्णायक मोड़ 2022 में आया जब एशियाई चैंपियनशिप के स्वर्ण विजेता और भारतीय नौसेना में कोच के रूप में काम करने वाले भारतीय मुक्केबाज सुरंजय सिंह ने इस युवा मुक्केबाज को भिवानी स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) केंद्र में देखा।
राष्ट्रमंडल खेलों के खिताब सहित 2009 और 2010 के बीच लगातार आठ अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीतने वाले सुरंजय ने उस समय 17 वर्षीय हितेश में प्रतिभा की झलक देखी और उन्हें भारतीय नौसेना में नौकरी की पेशकश की।
हितेश ने कहा, ‘‘जब मैं नौसेना में शामिल हुआ तो यह मेरे लिए सबसे अच्छी बात थी क्योंकि मैं अपने पिता को गाड़ी चलाना बंद करने के लिए कह पाया। मैं देख सकता था कि उनके घुटनों में बहुत दर्द था फिर भी वह गाड़ी चलाते थे। 2023 में उनकी सर्जरी हुई।’’
आर्थिक सुरक्षा के अलावा नौसेना में नौकरी ने हितेश को भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक के साथ ट्रेनिंग का अवसर दिया। सुरंजय के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग ने हितेश के खेल के प्रति दृष्टिकोण, विशेष रूप से खेल के मानसिक पक्ष को आकार दिया।
भाषा सुधीर पंत
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