इंदौर (मध्यप्रदेश), 28 जुलाई (भाषा) इंदौर के एक सरकारी विद्यालय की 52 वर्षीय शिक्षिका ने हड्डियों की अपनी गंभीर बीमारी से परेशान होकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है।
हालांकि, प्रशासन ने नैदानिक मनोवैज्ञानिक को महिला के पास भेजकर उचित परामर्श उपलब्ध कराया है, लेकिन वह टस से मस होने को तैयार नहीं है।
इच्छामृत्यु के तहत दर्दनाक और लाइलाज बीमारी या शारीरिक अक्षमता पैदा करने वाली बीमारी से पीड़ित किसी व्यक्ति को बिना दर्द के मृत्यु दी जाती है।
शहर के जबरन कॉलोनी के शासकीय सामुदायिक भवन प्राथमिक विद्यालय में पदस्थ शिक्षिका चंद्रकांता जेठवानी (52) ने सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि वह पिछले कई बरसों से ‘ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा’ नाम की बीमारी से जूझ रही हैं।
‘ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा’ एक आनुवंशिक विकार है जो मरीज की हड्डियों के निर्माण को प्रभावित करता है जिससे हड्डियां बेहद कमजोर हो जाती हैं।
जेठवानी ने कहा, ‘‘मैंने इच्छा मृत्यु के लिए मीडिया के माध्यम से राष्ट्रपति से अनुरोध किया है। मैंने अपनी आंखें और शरीर पहले ही दान कर दिया है। मैं चाहती हूं कि मेरी मौत के बाद चिकित्सा के विद्यार्थी मेरी बीमारी के बारे में अनुसंधान करें।’’
जेठवानी के मुताबिक पहले वह वॉकर के जरिये चल लेती थीं और स्कूटर भी चला लेती थीं, लेकिन वर्ष 2020 में एक चिकित्सक की कथित लापरवाही से ‘गलत दवा’ दिए जाने के कारण उनके शरीर में ऐसी विपरीत प्रतिक्रिया हुई कि उनकी जिंदगी ‘व्हीलचेयर’ पर सिमट गई जिसकी मदद से वह विद्यालय जाती हैं।
अविवाहित शिक्षिका ने कहा, ‘‘मेरे माता-पिता और भाई-बहनों की मौत हो चुकी है। मैं शारीरिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट चुकी हूं।’’
सामाजिक न्याय विभाग के प्रभारी संयुक्त संचालक पवन चौहान ने बताया, ‘‘हमने नैदानिक मनोवैज्ञानिक को शिक्षिका के पास भेजकर उन्हें उचित परामर्श दिलाया है। अगर जरूरत पड़ेगी, तो हम उन्हें फिर से परामर्श दिलाएंगे।’’
जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) विनय मिश्रा ने बताया कि शिक्षा विभाग जेठवानी की हरसंभव मदद कर रहा है और उनकी नियुक्ति ऐसे विद्यालय में की गई है जहां वह आसानी से पहुंच सकती हैं।
बहरहाल, जेठवानी इच्छा मृत्यु के अपने अनुरोध पर अब तक अडिग हैं। उन्होंने मांग की कि जब तक राष्ट्रपति से उन्हें इच्छा मृत्यु की अनुमति नहीं मिलती, तब तक उन्हें उनकी पूरे 24 घंटे देख-भाल करने के लिए प्रशासन की ओर से एक महिला कर्मचारी मुहैया कराई जाए।
जेठवानी ने कहा, ‘‘मैं खुदकुशी कभी नहीं करूंगी। मैं अगले एक-दो हफ्ते तक इच्छा मृत्यु के लिए राष्ट्रपति की अनुमति का इंतजार करूंगी। अगर मुझे यह अनुमति नहीं मिलती है, तो मैं अन्न-जल त्याग दूंगी।’’
उच्चतम न्यायालय ने गरिमा पूर्वक मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है, तथा विशेष रूप से कुछ शर्तों के तहत ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति दी है। इसमें गंभीर रूप से बीमार मरीजों को यह विकल्प देना शामिल है जिसके तहत वह वसीयत के जरिये चिकित्सा उपचार लेने से इनकार कर सकते हैं, विशेष रूप से यदि वे लगातार शारीरिक रूप से निष्क्रिय अवस्था में हैं और अपनी इच्छाओं को बताने में असमर्थ हैं।
इस वसीयत में वे लिख सकते हैं कि अगर वे ऐसी स्थिति में पहुंच जाएं जहां वे कुछ कह या समझ न सकें, तो उन्हें कोई इलाज न दिया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने 2023 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित किया, जिससे यह रोगियों और परिवारों के लिए कम बोझिल हो गया।
इन संशोधनों में जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना तथा सरकारी अधिकारियों की भागीदारी को कम करना शामिल था।
दिशानिर्देशों में एक तय प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है, जिसमें मरीज की हालत का मूल्यांकन करने के लिए चिकित्सकीय बोर्ड शामिल हो और यह सुनिश्चित किया जाता है कि मरीज या उसके अधिकृत प्रतिनिधि की स्पष्ट सहमति हो।
यदि मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की अनुमति देने से इनकार कर देता है, तो मरीज का परिवार उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है, जो मामले की फिर से समीक्षा करने के लिए एक नया बोर्ड गठित करेगा।
भाषा हर्ष खारी नोमान संतोष
संतोष