नयी दिल्ली, 28 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय सोमवार को कुछ राज्यों में पुलिस महानिदेशकों की तदर्थ नियुक्ति सहित कई मुद्दों पर दो हफ्ते बाद विचार करने के लिए राजी हो गया।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता और पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह की उस याचिका पर भी विचार करेगी जिसमें उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था लागू करने की मांग की है जहां मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का चयन करे।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) निदेशक की नियुक्ति की तरह, एक उपयुक्त व्यक्ति को डीजीपी नियुक्त करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जा सकता है।
पीठ ने वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश की इस दलील पर भी गौर किया कि झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
आरोप लगाया गया कि गुप्ता केंद्र सरकार के नियमों के तहत 60 वर्ष की उम्र पूरी करने पर 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन राज्य सरकार ने उनके कार्यकाल विस्तार के लिए केंद्र को पत्र लिखा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ये सभी मामले महत्वपूर्ण हैं और इनमें कुछ समय लगेगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने विभिन्न पक्षों की ओर से पेश वकीलों से कहा कि वे अपनी याचिकाओं की प्रतियां वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को उपलब्ध कराएं, जो न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता करेंगे।
एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के 2006 के फैसले और उसके बाद के निर्देशों का अक्षरशः पालन नहीं किया गया है।
ये याचिकाएं पुलिस सुधारों पर सर्वोच्च न्यायालय के 2006 के फैसले के कार्यान्वयन से संबंधित हैं, जिसमें जांच और कानून-व्यवस्था के कर्तव्यों को अलग करने जैसे कदमों की सिफारिश की गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 के बाद अन्य निर्देश भी पारित किए, जिनमें राज्य सरकारों द्वारा डीजीपी के पद पर कोई तदर्थ या अंतरिम नियुक्ति नहीं करना शामिल था।
भूषण और अन्य ने आरोप लगाया है कि विभिन्न राज्य सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है।
भाषा संतोष प्रशांत
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