नयी दिल्ली, 29 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई व्यक्ति सिर्फ वकील की भूमिका निभा रहा है, तो जांच एजेंसियों को उसे जांच का सामना कर रहे अपने मुवक्किल को कानूनी सलाह देने के लिए तलब नहीं करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि, अगर कोई वकील “अपराध में मुवक्किल की मदद कर रहा है”, तो उसे समन भेजा जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह टिप्पणी जांच एजेंसियों द्वारा जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए वकीलों को तलब किए जाने से जुड़े स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान की।
पीठ ने कहा, “हमने शुरू में ही कहा था कि अगर कोई (वकील) अपराध में मुवक्किल की मदद कर रहा है, तो उसे तलब किया जा सकता है… लेकिन केवल कानूनी सलाह देने के लिए नहीं।”
पीठ ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) जैसे बार निकायों की दलीलें सुनीं, जिनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और वकील विपिन नायर ने किया।
सिंह, जो एससीबीए के अध्यक्ष भी हैं, ने इस बात पर चिंता जताई कि “मनमाने ढंग से समन जारी किए जाने” से कानूनी पेशे पर “गलत प्रभाव” पड़ सकता है।
उन्होंने कहा, “अगर वकीलों को महज मुवक्किलों को सामान्य कानूनी सलाह देने के लिए समन भेजा जाने लगे, तो कोई भी (वकील) संवेदनशील आपराधिक मामलों में सलाह देने का साहस नहीं करेगा।”
सिंह ने मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से अपनाए गए सुरक्षा उपायों के समान सुरक्षा उपाय लागू करने का अनुरोध किया।
उन्होंने कहा कि किसी वकील को तलब करने की अनुमति जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) से ली जानी चाहिए और फिर इसे जारी करने से पहले न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से इसकी जांच की जानी चाहिए।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता इस बात से सहमत थे कि वकीलों को केवल कानूनी सलाह देने के लिए नहीं तलब किया जाना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वकील और मुवक्किल के बीच संचार के विशेषाधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।
मेहता ने ऐसे उपाय लागू करने के प्रति आगाह किया, जिससे असमानता पैदा हो सकती है।
उन्होंने कहा, “केवल वकीलों को तलब करने के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति, गैर-वकीलों को नहीं, अनुच्छेद-14 का उल्लंघन हो सकती है।”
पीठ ने निर्देश दिया कि एससीबीए और एससीएओआरए की ओर से पेश लिखित सुझाव तीन दिन के भीतर सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को भेजे जाएं।
मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 अगस्त की तारीख तय की गई है, जब केंद्र अपना पक्ष रखेगा।
भाषा पारुल प्रशांत
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