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Wednesday, July 30, 2025

असम, बंगाल में जनसांख्यिकी बदलाव ‘टाइम बम’ की तरह है, हमें इसका समाधान ढूढना होगा: आर एन रवि

Newsअसम, बंगाल में जनसांख्यिकी बदलाव ‘टाइम बम’ की तरह है, हमें इसका समाधान ढूढना होगा: आर एन रवि

(फाइल फोटो के साथ)

गांधीनगर, 29 जुलाई (भाषा) तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने मंगलवार को असम और पश्चिम बंगाल समेत देश के कुछ हिस्सों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे ‘टाइम बम’ की तरह बताया तथा संबंधित पक्षों से समाधान खोजने की अपील की।

महाराष्ट्र समेत कुछ राज्यों में भाषा को लेकर चल रहे विवादों और हिंदी थोपे जाने के दावों के बीच उन्होंने कहा कि भाषा के नाम पर कटुता रखना भारत के चरित्र या संस्कृति में नहीं है।

रवि ने कहा, ‘‘यह देश हमेशा बाहरी आक्रमणों से लड़ने में कामयाब रहा है। लेकिन जब आंतरिक मामलों की बात आती है, तो अतीत में क्या हुआ था? 1947 में आंतरिक उथल-पुथल के कारण भारत का विभाजन हुआ था। एक विचारधारा को मानने वाले लोगों ने घोषणा की कि वे हम सब के साथ नहीं रहना चाहते। इस विचारधारा ने हमारे देश को तोड़ दिया।’’

तमिलनाडु के राज्यपाल शैक्षणिक वर्ष 2025-2026 का आरंभ होने के अवसर पर यहां राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) में विद्यार्थियों और अध्यापकों को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने पूछा, ‘‘क्या किसी को पिछले 30-40 सालों में असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वांचल (उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्से) में हुए जनसांख्यिकी बदलावों की चिंता है? क्या आज कोई यह अंदाजा लगा सकता है कि आने वाले 50 सालों में इन इलाकों में देश के बंटवारे का काम नहीं होगा?’’

पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘‘हमें कुछ इलाकों में बढ़ती संवेदनशील जनसांख्यिकी और उसके भविष्य पर एक अध्ययन करना चाहिए। यह समस्या एक टाइम बम की तरह है। हमें यह सोचना होगा कि भविष्य में हम इस समस्या से कैसे निपटेंगे। आज से ही इसका समाधान ढूंढना शुरू कर देना चाहिए।’’

उनके अनुसार, किसी देश की सैन्य शक्ति आंतरिक अशांति से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं होती।

रवि ने तर्क दिया कि यदि सोवियत संघ की सैन्य शक्ति आंतरिक समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त होती, तो 1991 में उसका विघटन नहीं होता।

महाराष्ट्र और कर्नाटक में भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच, रवि ने कहा कि भाषा के नाम पर कटुता रखना भारत का चरित्र नहीं है।

राज्यपाल ने कहा, ‘‘आजादी के बाद, हम आपस में लड़ने लगे। इसका एक कारण भाषा थी। उन्होंने (भाषाई पहचान के आधार पर राज्यों की वकालत करने वालों ने) इसे भाषाई राष्ट्रवाद कहा।’’

उन्होंने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने बार-बार स्पष्ट किया है कि सभी भारतीय भाषाएं समान स्तर की हैं और समान सम्मान की पात्र हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर कहा है कि सभी भारतीय भाषाएं हमारी राष्ट्रीय भाषाएं हैं और हम उनमें से प्रत्येक का सम्मान करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि प्रत्येक राज्य में कम से कम प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषाओं में दी जानी चाहिए।’’

राज्यपाल ने कहा कि भाषा के नाम पर लोगों के बीच कटुता भारत के लोकाचार का हिस्सा नहीं है।

भाषा

राजकुमार प्रशांत

प्रशांत

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