(सौगत मुखोपाध्याय)
मुरारई (पश्चिम बंगाल), 30 जुलाई (भाषा) बीरभूम जिले के मुस्लिम बहुल मुरारई विधानसभा क्षेत्र के पैकर गांव की दोरजी पाड़ा बस्ती में 60 वर्षीय भोदू शेख की आंखों में भविष्य को लेकर अनिश्चितता है।
भोदू की बेटी सोनाली और पांच वर्षीय नाती साबिर को दामाद दानेश के साथ पिछले महीने दिल्ली पुलिस ने रोहिणी के सेक्टर 26 स्थित बंगाली बस्ती से उठा लिया था और बांग्लादेश भेज दिया था।
दिल्ली पुलिस ने बताया था कि विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के आदेश के बाद उन्हें निर्वासित किया गया था।
भोदू ने बताया कि यह परिवार लगभग 25 साल से दिल्ली में रह रहा था, जहां दानेश कूड़ा-कचरा बीनने का काम करता था। उन्होंने आरोप लगाया कि बस्ती के सैकड़ों अन्य निवासियों के साथ उन्हें भी इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे बांग्ला बोलते थे और उन्हें बांग्लादेशी कहे जाने का सबसे ज़्यादा ख़तरा था।
भोदू ने दावा किया, ‘मैं इसी गांव में पैदा हुआ था, और मेरी बेटी भी। मेरा नाती दिल्ली में पैदा हुआ।’
सोनाली के भाई सूरज शेख ने आरोप लगाया कि उन्होंने एक वकील को 30,000 रुपये दिए थे, जिसने उनकी बहन और उसके परिवार को रिहा करवाने का वादा किया, लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया है।
सूरज की पत्नी सीमा ने कहा, ‘हम ईद-उल-अजहा त्यौहार के लिए घर आए थे, लेकिन अब हम वापस जाने से बहुत डरे हुए हैं।’
अपने इस दावे के समर्थन में कि उसकी बहन अब बांग्लादेश में किसी अज्ञात स्थान पर है, सूरज ने एक फेसबुक वीडियो दिखाया, जिसकी प्रामाणिकता की पीटीआई स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका। इस वीडियो में सोनाली और उसका परिवार तीन अन्य लोगों के साथ हाथ जोड़कर मदद की गुहार लगा रहे हैं।
लगभग एक किलोमीटर दूर, पैकर के फकीरपाड़ा में 30 वर्षीय आमिर खान की भी ऐसी ही कहानी है। आमिर ने आरोप लगाया कि उनकी बहन स्वीटी बीबी और उनके दो बेटों कुर्बान शेख (16) और इमाम दीवान (6) को दिल्ली पुलिस ने सोनाली के पड़ोस से ही हिरासत में लिया और फिर 27 जून को बांग्लादेश भेज दिया।
आमिर ने बताया, ‘मेरी बहन उस इलाके में घरेलू सहायिका का काम करती थी। वह 12 साल की उम्र से दिल्ली में रह रही थी और जब पुलिस ने छापा मारा तो वह घर पर नहीं थी, इसलिए वे उसके बड़े बेटे को ले गए। जब वह कुर्बान को ढूंढ़ने पुलिस स्टेशन पहुंची, तो उसे भी गिरफ़्तार कर लिया गया। उसने बीरभूम में अपने स्थायी पते के सबूत के तौर पर आधार कार्ड दिखाया, जिसे पुलिस ने खारिज कर दिया।’
आमिर ने राज्य स्वास्थ्य विभाग का प्रमाण पत्र दिखाया, जिसमें कहा गया है कि इमाम का जन्म एक जनवरी, 2020 को मुरारई ग्रामीण अस्पताल में हुआ था।
फेसबुक के वीडियो में स्वीटी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की और बांग्लादेश भेजने से पहले उन पर मेडिकल जांच और बायोमेट्रिक परीक्षण के लिए दबाव डाला।
स्वीटी की मां महिदा बीबी ने रूंधे गले से कहा, ‘लगभग एक महीने से हमारा उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ है। हमें कोई अंदाजा नहीं है कि वे कहां हैं और अनजान देश में कैसे रह रहे हैं।’
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और मुरारई के स्थानीय निवासी समीरुल इस्लाम ने कहा, ‘हम इसके खिलाफ अंत तक लड़ेंगे, राजनीतिक और कानूनी दोनों तरह से।’
इस्लाम ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा प्रवासी बंगालियों के बारे में फैलाए गए कथित ‘भाषाई आतंक’ के खिलाफ बोलपुर में अपनी पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी की ‘भाषा आंदोलन’ रैली में उनके साथ मार्च किया।
झारखंड के सीमावर्ती गांव कहिनगर में अताउल शेख (16) और उनके पड़ोसी मरजान (17) ने इस महीने की शुरुआत में ओडिशा सरकार के एक हिरासत शिविर में रखे जाने की अपनी आपबीती सुनाई।
मरजान ने दावा किया कि उन्होंने शिविर में लगभग 250 प्रवासी श्रमिकों को बंद देखा जो सभी बांग्ला भाषी थे। मरजान को दो दिन तक हिरासत में रखा गया था।
मरजान की भाभी चांदनी बीबी ने पूछा, ‘क्या सिर्फ़ बांग्लादेशी ही बंगाली बोलते हैं? क्या काफ़ी संख्या में भारतीय ये भाषा नहीं बोलते?’
उन्होंने कहा, ‘इस तर्क से तो कोलकाता में हर बंगाली भाषी नागरिक को गिरफ़्तार कर लेना चाहिए। लगता है अब हमें अंग्रेज़ी बोलना सीखना ही होगा।’
भाषा आशीष नरेश
नरेश