27.5 C
Jaipur
Thursday, July 31, 2025

उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज किया

Newsउच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज किया

नयी दिल्ली, 30 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के 2023 के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार के इस रुख को बरकरार रखा गया था कि किसी शिक्षक की सेवानिवृत्ति की आयु इसलिए नहीं बढ़ाई जा सकती, क्योंकि उसने राज्य के किसी विश्वविद्यालय में 10 साल तक लगातार अध्यापन की शर्त पूरी नहीं की है।

अदालत ने कहा कि जब कोई कर्मचारी दशकों तक सेवा कर चुका हो और सेवानिवृत्ति के करीब हो, तब उसे सिर्फ इस आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटना कि उसने पढ़ाने का अनुभव पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालय से लिया है या किसी और राज्य से, इसका न तो कोई तार्किक संबंध है और न ही कोई साफ-साफ उद्देश्य दिखता है।

न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि फरवरी 2021 की अधिसूचना में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का उद्देश्य पश्चिम बंगाल के बाहर के विश्वविद्यालयों से अनुभव प्राप्त कर्मचारियों को इससे बाहर करना नहीं था।

इसने कहा है कि अधिसूचना के पाठ, संदर्भ और उद्देश्य से पता चलता है कि इसका उद्देश्य केवल राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित और निजी संस्थानों के बीच अंतर करना था।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाले कर्मचारी की अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता कानूनी खर्च के तौर पर 50,000 रुपये पाने का हकदार है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब ऐसे निर्णयों की न्यायिक समीक्षा में कड़ी पड़ताल की जाती है, तो दुर्भाग्यवश वे संकीर्णता के रूप में सामने आते हैं, तथा उनमें भाईचारे के हमारे संकल्प को कमजोर करने की संभावना होती है।

पीठ ने कहा कि इस तरह के कार्यकारी निर्णय छोटे या साधारण गलतियों वाले लगते हैं, लेकिन इनके दूरगामी परिणाम होते हैं।

शीर्ष अदलात ने कहा कि भाईचारे का सिद्धांत खुद सामने नहीं आता, बल्कि इसे पहचानना और बनाए रखना संवैधानिक अदालतों की जिम्मेदारी होती है। अदालत ने यह भी कहा कि अगर यह भावना प्रशासन के किसी छोटे से हिस्से में भी कमजोर होती है, तो अदालत का कर्तव्य है कि उसे फिर से मजबूत करे, ताकि देश की एकता और अखंडता बनी रहे।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ता बर्दवान विश्वविद्यालय का एक नियमित कर्मचारी था, जो 2007 में विश्वविद्यालय में नियुक्त हुआ था और 2021 तक निर्बाध रूप से सेवा में रहा।

पीठ ने कहा कि 14 साल से अधिक की सेवा देने के बाद, पश्चिम बंगाल सरकार ने फरवरी 2021 में एक ज्ञापन जारी कर सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी।

पीठ ने कहा कि ज्ञापन में यह प्रावधान था कि सेवानिवृत्ति की बढ़ी हुई आयु का लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा जिन्होंने किसी राज्य द्वारा वित्त पोषित विश्वविद्यालय या कॉलेज में न्यूनतम 10 वर्ष का निरंतर शिक्षण अनुभव प्राप्त किया हो।

इसमें कहा गया है कि अपीलकर्ता द्वारा ज्ञापन का लाभ लेने का दावा करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति को अभ्यावेदन दिए जाने के बाद, विश्वविद्यालय ने सूचित किया कि वह 31 अगस्त, 2023 को 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे, क्योंकि उनके पास ‘पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा वित्त पोषित विश्वविद्यालय या कॉलेज’ में शिक्षण का कोई अनुभव नहीं है।

इससे व्यथित होकर उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि वह ज्ञापन के दायरे में आते हैं और 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

बाद में, राज्य और विश्वविद्यालय ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए अलग-अलग अपील दायर की। खंडपीठ ने अपील स्वीकार कर ली और एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया।

भाषा नोमान सुरेश

सुरेश

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles