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Thursday, July 31, 2025

निठारी हत्याकांड: 12 मामलों में बरी होने के बाद भी सुरेंद्र कोली जेल में ही रहेगा

Newsनिठारी हत्याकांड: 12 मामलों में बरी होने के बाद भी सुरेंद्र कोली जेल में ही रहेगा

नयी दिल्ली, 30 जुलाई (भाषा) निठारी हत्याकांड के 12 मामलों में दोषी सुरेंद्र कोली को बरी करने के फैसले को उच्चतम न्यायालय द्वारा बरकरार रखे जाने के बाद भी वह जेल में ही रहेगा, क्योंकि उसे नाबालिग रिम्पा हलदर की हत्या के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के प्रवक्ता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘निठारी कांड में आजीवन कारावास की सजा के कारण दोषी (कोली) अभी जेल में ही रहेगा।’’

राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के निठारी में 29 दिसंबर, 2006 को मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद ये हत्याएं प्रकाश में आईं। कोली पंढेर का घरेलू सहायक था।

पंढेर के घर के आस-पास के नालों की तलाशी में और भी कंकाल मिले। इनमें से ज़्यादातर कंकाल उस इलाके से लापता हुए गरीब बच्चों और युवतियों के थे।

दस दिन के भीतर, सीबीआई ने मामला अपने हाथ में ले लिया तथा उसकी तलाशी में और भी अवशेष बरामद हुए।

वर्ष 2007 में पंढेर और कोली के खिलाफ कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे। सीबीआई ने सबूतों के अभाव में उनमें से तीन में ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल कर दी थी। बाकी 16 मामलों में से, कोली को पहले ही तीन मामलों में बरी कर दिया गया था और रिम्पा हलधर मामले में उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था।

कोली को गाजियाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 13 फरवरी, 2009 को 14 वर्षीय हलधर की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी, जो 8 फरवरी, 2005 को लापता हो गई थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 11 सितंबर, 2009 को उसकी मृत्युदंड की पुष्टि की। इस निर्णय के विरुद्ध अपील को 15 फरवरी, 2011 को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया।

गाजियाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 3 मई, 2011 को कोली को फांसी देने के लिए मृत्यु वारंट जारी किया था, जिसमें उसे 24 मई से 31 मई, 2011 के बीच फांसी देने का आदेश दिया गया था।

कोली द्वारा 7 मई, 2011 को राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर किए जाने के कारण फांसी रोक दी गई।

तीन साल और तीन महीने बाद, अंततः 20 जुलाई, 2014 को राष्ट्रपति ने इसे खारिज कर दिया।

वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किए जाने के बाद गाजियाबाद न्यायालय द्वारा पुनः मृत्यु वारंट जारी किया गया और फांसी लगभग तय हो चुकी थी। उसी दौरान मामला ‘पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ द्वारा दायर जनहित याचिका और कोली की याचिका के माध्यम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचा।

भाषा आशीष नेत्रपाल

नेत्रपाल

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