नारायणपुर, 31 जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ में केरल की दो ननों को कथित मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के मामले में गिरफ्तार किए जाने के बाद तीन युवतियों में से एक ने आरोप लगाया है कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उसे झूठा बयान देने के लिए मजबूर किया और उसके साथ मारपीट की। युवती ने पुलिस पर भी उनका बयान ठीक से दर्ज नहीं करने का आरोप लगाया।
उसने कहा कि मामले में गिरफ्तार दोनों नन व एक अन्य व्यक्ति निर्दोष हैं और उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए।
केरल की नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को सुखमन मंडावी के साथ 25 जुलाई को राज्य के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर शासकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने स्थानीय बजरंग दल के एक पदाधिकारी की शिकायत के बाद गिरफ्तार किया था।
बजरंगदल कार्यकर्ता ने उन पर आदिवासी बहुल नारायणपुर जिले की तीन युवतियों का जबरन धर्मांतरण और उनकी तस्करी करने का आरोप लगाया था।
नारायणपुर के अबूझमाड़ क्षेत्र के कुकराझोर गांव में पीटीआई-भाषा से बात करते हुए, कमलेश्वरी प्रधान (21) ने कहा कि उनकी तस्करी नहीं की जा रही थी, क्योंकि वह अपनी इच्छा और अपने माता-पिता की सहमति से उनके साथ जा रही थीं।
प्रधान ने कहा, ‘मैं अपने माता-पिता की सहमति से ननों के साथ आगरा जा रही थी। वहां से हम भोपाल जाने वाले थे जहां हमें एक ईसाई अस्पताल में काम दिया जाना था। हमें 10 हजार रुपये प्रति माह वेतन के साथ-साथ भोजन, कपड़े और आवास देने का वादा किया गया था।’
उन्होंने बताया कि वह, मंडावी और जिले के ओरछा क्षेत्र की दो अन्य युवतियां 25 जुलाई की सुबह दुर्ग स्टेशन पहुंचीं।
प्रधान ने कहा, ‘नन, जिनसे मैं पहले कभी नहीं मिली थी, कुछ घंटों बाद वहां पहुंचीं। इसी बीच, हमारा एक व्यक्ति से सामना हुआ। बाद में बजरंग दल के अन्य लोग भी उसके साथ आ गए। उन्होंने हमें धमकाना, गाली देना और मारपीट करना शुरू कर दिया।’
उन्होंने कहा, “तभी रेलवे पुलिस आ गई और हमें (जीआरपी) पुलिस स्टेशन ले जाया गया जहां एक महिला, ज्योति शर्मा, जिसने खुद को दक्षिणपंथी कार्यकर्ता बताया, ने मुझे थप्पड़ मारा और बयान बदलने की धमकी दी।”
प्रधान ने बताया, ‘उसने मुझसे कहा कि मैं कहूं कि मुझे जबरदस्ती ले जाया जा रहा था। उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो मेरे भाई को जेल होगी व उसे पीटा जाएगा।’
उसने बताया, “यहां तक कि पुलिस ने भी मेरा असली बयान नहीं लिया – वे ऐसी बातें लिख रहे थे जो मैंने कभी नहीं कही थीं। जब मैंने बोलने की कोशिश की, तो उन्होंने मुझे चुप रहने को कहा और पूछा कि क्या मैं घर जाना चाहती हूं।’
दसवीं कक्षा तक पढ़ी प्रधान ने कहा कि वह दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थी और 250 रुपये प्रतिदिन कमाने के लिए नारायणपुर जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए रोज़ाना लगभग 10 किलोमीटर साइकिल चलाती थी।
उन्होंने बताया, ‘सुखमन मंडावी, जिन्होंने मुझे नौकरी के बारे में बताया, मेरे लिए एक भाई की तरह हैं। हमारी मुलाकात चर्च के माध्यम से हुई थी। इससे पहले, इलाके की कई महिलाएं अस्पतालों में काम करने भी गई थीं। सुकमन की एक बहन भी बाहर एक ईसाई अस्पताल में काम करती थी और बाद में वापस आ गई।’
प्रधान ने बताया कि उनके माता-पिता किसान हैं और गांव में खेती-बाड़ी का काम करते हैं।
प्रधान ने धर्मांतरण के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, ‘मेरा परिवार पिछले चार-पांच वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है। मेरी मां बीमार रहती थीं। हम उन्हें ‘चंगाई’ सभा में ले गए, जहां से उनकी तबियत ठीक होने लगी, जिसके बाद हमने ईसाई धर्म का पालन करना शुरू कर दिया।’
प्रधान ने राज्य सरकार से तीनों आरोपियों – दो कैथोलिक नन और सुखमन मंडावी – को निर्दोष बताते हुए रिहा करने की अपील की।
हालांकि, बजरंग दल ने प्रधान के आरोपों का खंडन किया है।
बजरंग दल की दुर्ग इकाई के संयोजक रवि निगम ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘हमने न तो किसी को धमकाया है और न ही पीटा है। रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा लगा है, उनसे सच्चाई सामने आ जाएगी।”
भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में केरल की दो कैथोलिक ननों की गिरफ़्तारी से राजनीतिक विवाद छिड़ गया है, कांग्रेस और माकपा ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की है।
हालांकि, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विपक्ष पर ‘मामले का राजनीतिकरण’ करने का आरोप लगाया।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले की एक सत्र अदालत ने बुधवार को कहा कि कथित मानव तस्करी और अवैध धर्मांतरण के मामले में दो ननों सहित तीन लोगों की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करने का उसे अधिकार नहीं है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनीश दुबे ने ज़मानत याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि उन्हें राहत के लिए विशेष एनआईए अदालत का रुख करना होगा।
वहीं, आरोपियों ने दावा किया कि उनके साथ आगरा जाने वाली तीन आदिवासी लड़कियां पहले से ही ईसाई धर्म का अनुसरण कर रही थीं, इसलिए उनके धर्मांतरण का सवाल ही नहीं उठता।
भाषा सं संजीव नरेश पवनेश
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