श्रीनगर, 31 जुलाई (भाषा) पूर्व संसदीय कार्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने बृहस्पतिवार को कहा कि संसद को सुचारु रूप से चलने देना चाहिए, क्योंकि संसद की कार्यवाही के दौरान विपक्ष की अनुपस्थिति से सरकार को ही मदद मिलती है।
आजाद ने कहा, ‘‘मैं सदन की कार्यवाही बाधित करने के खिलाफ हूं। अगर आप सदन को चलने नहीं देते, तो फिर आप चुनकर क्यों आते हैं? सदन में प्रवेश करने का मतलब है कि आप संसद में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मुद्दों और लोगों की समस्याओं को सरकार के सामने उठाएंगे।’’
आजाद की यह टिप्पणी राज्यसभा में विपक्षी दलों के हंगामे के बीच आई है, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सदन में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस का जवाब नहीं देने और विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा नहीं उठाने देने का विरोध किया।
आजाद ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब विपक्ष सदन से बहिर्गमन करता है तो सरकार खुश होती है क्योंकि तब वह आसानी से कानून पारित कर सकती है। इसलिए विपक्ष का बहिर्गमन सरकार की मदद करता है, वह उनका विरोध नहीं करता।’’
मनमोहन सिंह सरकार में मई 2004 से नवंबर 2005 तक संसदीय कार्य मंत्री रहे आजाद ने कहा कि वह हमेशा संसद के सुचारु संचालन के पक्षधर रहे हैं।
संसद में अपने पहले कार्यकाल को याद करते हुए आजाद ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें संसद में विपक्षी नेताओं के भाषण में बाधा न डालने की सलाह दी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘इंदिरा ने मुझे फोन किया और कहा कि आप संसद में बोलने आए हैं, हंगामा करने नहीं। उन्होंने मुझसे कहा कि विपक्षी नेताओं के भाषण में बाधा डालकर कोई नेता नहीं बन सकता।’’
हाल ही में सुरक्षा बलों द्वारा पहलगाम हमले के लिए जिम्मेदार तीन आतंकवादियों को मार गिराए जाने के संबंध में ‘ऑपरेशन महादेव’ पर आजाद ने कहा कि वह सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए हर ऑपरेशन का समर्थन करते हैं, लेकिन मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
अपनी ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी’ (डीपीएपी) के भविष्य के बारे में पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह इस पर निर्णय लेंगे कि इसे जारी रखना है या नहीं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे पर आजाद ने कहा कि उनके पास प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है।
आजाद ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से ट्रंप बहुत सी बातें बोलते हैं। इसलिए यह बहुत मुश्किल है। प्रधानमंत्री ने सदन में स्पष्ट कर दिया है कि यह हमारा खुद का निर्णय था और किसी देश ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया। उन्होंने अमेरिका के उपराष्ट्रपति के साथ अपनी बातचीत का भी जिक्र किया है। इसी के साथ यह अध्याय समाप्त हो गया है।’’
भाषा संतोष पवनेश
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