मुंबई, 31 जुलाई (भाषा) मालेगांव विस्फोट में मारी गई 10 वर्षीय फरहीन के पिता ने मामले में निचली अदालत के फैसले को ‘‘गलत और अस्वीकार्य’’ बताते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि जरूरत पड़ने पर वह न्याय पाने के लिए उच्चतम न्यायालय तक का रुख करेंगे।
वहीं, मामले में कुछ पीड़ित परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शाहिद नदीम ने कहा कि उनके मुवक्किल इस फैसले के खिलाफ स्वतंत्र अपील दायर करेंगे। नदीम ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) पर आरोप लगाया कि उसने मुकदमे के दौरान अपने बयान से पलट जाने वाले गवाहों पर झूठी गवाही देने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।
उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को हुए विस्फोट में छह लोगों की मौत के लगभग 17 साल बाद मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर (साध्वी प्रज्ञा) और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ ‘‘कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं’’ है।
फैसले के बाद फरहीन के पिता लियाकत शेख (67) ने पत्रकारों से बातचीत में विस्फोट वाले दिन के घटनाक्रम को याद किया। उन्होंने अपनी बेटी की फोटो दिखाते हुए कहा कि फरहीन उस दिन भिक्कू चौक पर वडा-पाव खरीदने के लिए घर से निकली थी।
पेशे से चालक शेख ने कहा, ‘‘मैंने धमाके की आवाज सुनी। हम धमाके वाली जगह के पास ही टीन की छत वाले एक घर में रहते थे। मैं अपनी बेटी को ढूंढ़ने के लिए घर से बाहर निकला, लेकिन वह नहीं मिली। बाहर अंधेरा था। किसी ने बताया कि घायलों में एक लड़की भी है, इसलिए मैं और मेरी पत्नी अस्पताल गए, जहां हमने उसे बहुत नाजुक हालत में पाया।’’
उन्होंने कहा कि आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्याप्त सबूतों के साथ आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
शेख ने कहा, ‘‘अदालत का फैसला गलत है। हम न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाएंगे।’’
मालेगांव विस्फोट में अपने बेटे सैयद अजहर को गंवाने वाले निसार अहमद ने भी कहा कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला और वे ऊंची अदालतों का रुख करेंगे। उन्होंने कहा कि किसी भी विस्फोट के पीड़ितों को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, न्याय मिलना चाहिए।
विस्फोट में मारे गए इरफान खान के चाचा उस्मान खान ने कहा कि उनका भतीजा ऑटो-रिक्शा चलाता था और वह भिक्कू चौक पर चाय पीने गया था, तभी वहां विस्फोट हो गया।
खान ने कहा, ‘‘पहले हम उसे (इरफान को) स्थानीय अस्पताल ले गए, वहां से हम उसे नासिक ले गए।’’ उन्होंने बताया कि नासिक अस्पताल के डॉक्टरों ने इरफान की गंभीर हालत को देखते हुए उसे मुंबई ले जाने की सलाह दी।
खान के मुताबिक, इरफान को मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने 10 घंटे तक मौत से जूझने के बाद दम तोड़ दिया।
खान ने कहा कि वह फैसले से खुश नहीं हैं।
उन्होंने सवाल किया, ‘‘पहले इस मामले में कुछ मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें ‘क्लीन चिट’ दे दी गई। अब इन लोगों को भी बरी कर दिया गया है, तो फिर दोषी कौन है?’’
वकील नदीम ने कहा कि आरोपियों को बरी किए जाने से मामले को लेकर एनआईए की ‘‘महत्वपूर्ण विफलताएं’’ उजागर होती हैं।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘…ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभावी रणनीति का अभाव है। मुकदमे के दौरान गवाह अपने बयान से पलट गए, फिर भी पीड़ितों के अनुरोध के बावजूद एनआईए ने उनमें से किसी के खिलाफ झूठी गवाही देने का आरोप नहीं लगाया।’’
नदीम ने कहा कि पीड़ित अब तक उस आघात से उबर नहीं पाए हैं, जिसे उन्होंने झेला है।
उन्होंने कहा, ‘‘वे न्याय पाने के लिए दृढ़ हैं और फैसले की समीक्षा के बाद बंबई उच्च न्यायालय में एक स्वतंत्र अपील दायर करेंगे।’’
नदीम ने दावा किया कि मालेगांव शहर का कोई भी गवाह या वे लोग जिनके बयान पिछली जांच एजेंसी (महाराष्ट्र एटीएस) ने दर्ज किए थे, अपने बयान से नहीं पलटे।
उन्होंने कहा, ‘‘रोजाना सुनवाई में शामिल होने वाले एक वकील के रूप में, मेरा मानना है कि अगर एनआईए ने पीड़ितों की चिंताओं को प्राथमिकता दी होती, तो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी।’’
अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों में से 37 ने अपनी गवाही के दौरान अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और उन्हें मुकरा हुआ गवाह घोषित कर दिया गया था।
भाषा पारुल नेत्रपाल
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