मुंबई, एक अगस्त (भाषा) वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपियों को बरी करने के अपने आदेश में विशेष अदालत ने महाराष्ट्र आतंकवाद-रोधी दस्ते (एटीएस) और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के बीच चल रही खींचतान को उजागर किया है और दोनों की जांच में भारी विरोधाभासों को रेखांकित किया है।
अदालत ने एक हजार से अधिक पृष्ठों के आदेश में कहा कि एटीएस के आरोपपत्र में दावा किया गया था कि आरडीएक्स युक्त विस्फोटक पुणे के एक घर में लगाया गया था, जो एनआईए के इस निष्कर्ष के विपरीत है कि विस्फोटक इंदौर में एक मोटरसाइकिल में लगाया गया था और सेंधवा बस स्टैंड से मालेगांव लाया गया था।
विशेष एनआईए न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने बृहस्पतिवार को पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी करते हुए कहा, ‘इस प्रकार, उनके आरोपपत्रों में भौतिक असमानता है और दोनों जांच एजेंसियां विभिन्न भौतिक पहलुओं पर एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं।’
अदालत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आरोपपत्र में लगाए गए आरोप बिना साक्ष्य के अपर्याप्त हैं। उसने टिप्पणी की, ‘केवल आरोपपत्र के शब्दों को निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता।’
फैसले में कहा गया है कि किसी भी आपराधिक मामले में सबूत पेश करने का पूरा भार अभियोजन पर होता है और वह बचाव पक्ष की कमज़ोरी पर निर्भर नहीं रह सकता।
न्यायाधीश ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि के पांच ‘महत्वपूर्ण सिद्धांतों’ को दोहराया, जिनमें परिस्थितियों को निर्णायक रूप से स्थापित करना, सुसंगत तथ्य, निर्णायक साक्ष्य और साक्ष्यों की पूरी श्रृंखला प्रस्तुत करना शामिल हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आरोपी के निर्दोष होने के बारे में कोई उचित संदेह न रहे।
उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुए विस्फोट की जांच पहले एटीएस ने की थी। बाद में, एनआईए ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया। इस घटना में छह लोग मारे गए और 101 अन्य घायल हुए थे।
अदालत ने कहा कि हालांकि यह अपराध राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता के विरुद्ध थे लेकिन ‘कानून सबूतों के मानक को कमज़ोर नहीं करता।’
न्यायाधीश ने स्वीकार किया कि ‘उन्हें इस बात का पूरा एहसास है कि इस जघन्य अपराध के लिए कोई सज़ा नहीं मिलने से समाज और खासकर पीड़ितों के परिवारों को कितनी निराशा और आघात पहुंचा है।’
फैसले में कहा गया, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा का उपदेश नहीं देता। अदालत को इस मामले में प्रचलित या प्रचलित जनधारणा के आधार पर आगे नहीं बढ़ना चाहिए।’
एनआईए ने अपने पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि एटीएस अधिकारियों ने आरोपियों को फंसाने के लिए कुछ गवाहों को धमकी दी थी।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आरोपियों के बीच कथित स्थानों पर हुई (षड्यंत्रकारी) बैठकें कथित अवैध गतिविधियों को अंजाम देने के उद्देश्य से थीं…।’
एक आरोपी द्वारा लगाए गए इस आरोप पर कि वरिष्ठ एटीएस अधिकारियों ने एक जांच अधिकारी महबूब मुजावर को आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया था, अदालत ने कहा कि उसे इस तर्क में कोई दम नहीं लगता।
अदालत ने कहा कि अपराध में कथित तौर पर इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल का हिस्सा क्षतिग्रस्त था और अभियोजन पक्ष का यह दावा कि बाइक में बम लगाया गया था, केवल अनुमान मात्र था।
अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि एनआईए ने जांच अपने हाथ में लेने के बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आरोपमुक्त कर दिया था।
एटीएस के अनुसार, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने कश्मीर से आरडीएक्स मंगवाया था, जहां वह एक सैन्य अधिकारी के रूप में तैनात थे। पुरोहित ने उसे अपने घर में रखा, बम बनाया और एक आरोपी को सौंप दिया, जिसने फिर उसे मोटरसाइकिल में लगाया। दूसरी ओर एनआईए ने दावा किया कि दोपहिया वाहन में बम इंदौर में लगाया गया था और फिर उसे मालेगांव लाया गया था।
भाषा अविनाश पवनेश
पवनेश