देहरादून, एक अगस्त (भाषा) उत्तराखंड में हाल ही में हुए पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई विधायकों के नजदीकी रिश्तेदारों को हार का सामना करना पड़ा।
लैंसडौन से भाजपा विधायक दलीप रावत की पत्नी नीतू देवी ने पौड़ी जिले में जयहरी जिला पंचायत सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें 411 वोटों से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
अल्मोड़ा जिले के सल्ट से भाजपा विधायक महेश जीना के पुत्र करन जीना को भी पंचायत चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।
जीना, स्याल्दे की बबलिया क्षेत्र पंचायत सीट से प्रत्याशी थे।
नैनीताल से भाजपा विधायक सरिता आर्य के बेटे मोहित आर्य को भी चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा।
मोहित आर्य ने नैनीताल जिले की भवाली गांव सीट से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था।
कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी और निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी भी चुनाव में हार गयीं।
भंडारी चमोली जिले के रानों वार्ड से मैदान में थीं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
पंचायत चुनावों में राजनीतिक दल सीधे तौर पर हिस्सा नहीं लेते। उम्मीदवार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े होते हैं और राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आवंटित चुनाव चिह्नों पर चुनाव लड़ते हैं।
राजनीतिक दल हालांकि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपना समर्थन देते हैं।
भाजपा की प्रदेश इकाई के मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने इस संबंध में पूछे जाने पर कहा कि उनकी पार्टी परिवारवाद में विश्वास नहीं रखती और इनमें से किसी प्रत्याशी को पार्टी ने अपना समर्थन नहीं दिया था।
भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष महेंद्र भटट ने भी किसी विधायक या पार्टी के पदाधिकारी के संबंधी को चुनाव में मिली हार को उससे जोड़े जाने के प्रयास को एक कुतर्क बताया।
उन्होंने कहा, “किसी विधायक या पार्टी के पदाधिकारी के संबंधी एक सामान्य उम्मीदवार की तरह चुनाव मैदान में थे। उन सीट पर पार्टी के कई कार्यकर्ता चुनाव मैदान में उतरे थे। उनकी हार को विधायक या पदाधिकारी से जोड़ना एक कुतर्क है और ये सरासर गलत है।”
भाषा दीप्ति जितेंद्र
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