मुंबई, पांच अगस्त (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि वह मुख्यमंत्री राहत कोष से धन के वितरण की निगरानी नहीं कर सकता है, लेकिन उसे भरोसा और आशा है कि उस धन का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया जाएगा, जिसके लिए उसका संचालन किया जा रहा है और इसमें कोई भटकाव नहीं होगा।
मुख्य न्यायाधीश आलोक आराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की एक पीठ ने 31 जुलाई के आदेश में कहा कि लोग सूचना के अधिकार के तहत कोष के लेनदेन के बारे में सूचना मांग सकते हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘हम मुख्यमंत्री राहत कोष (सीएमआरएफ) के संचालन की निगरानी नहीं कर सकते। हालांकि, हमें आशा और विश्वास है कि सीएमआरएफ में किए गए योगदानों का उपयोग उन्हीं उद्देश्यों के लिए किया जाएगा, जिसके लिए कोष संचालित होते हैं और किसी भी मामले में उद्देश्य से कोई भटकाव नहीं होगा।’’
उच्च न्यायालय ने मुंबई स्थित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नेंस ट्रस्ट’ की एक जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। याचिका में दावा किया गया था कि मुख्यमंत्री राहत कोष के धन का उपयोग किसी अलग उद्देश्य में किया जा रहा था।
याचिका में कहा गया है कि सीएमआरएफ का इस्तेमाल केवल और विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं, संकटों और उथल-पुथल के शिकार लोगों की सहायता के लिए किया जाना चाहिए, जिसकी परिकल्पना इसके गठन के समय की गयी थी।
सरकार ने यह कहकर इस याचिका का विरोध किया कि शुरू में सीएमआरएफ को प्राकृतिक आपदाओं और त्रासदी के पीड़ितों की सहायता के लिए स्थापित किया गया था, (लेकिन) नवंबर 2001 में इसके उद्देश्यों का विस्तार किया गया था। ऐसा प्राकृतिक आपदाओं के अलावा अन्य घटनाओं के पीड़ितों के लिए बढ़ती मांगों के मद्देनजर किया गया था।
भाषा सुरभि सुरेश
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