(सांद्रा गेरिडो, वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी)
सिडनी, पांच अगस्त (द कन्वरसेशन) आपकी स्मृति की अतल गहराइयों में, आपके मस्तिष्क ने आपकी किशोरावस्था के संगीत की एक ‘प्लेलिस्ट’ बना रखी है। जिंदगी भले ही आगे बढ़ गई हो लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि उस संगीत को सुनकर दिल और दिमाग के तार झनझना उठेंगे।
ऐसा क्यों?
खैर, मस्तिष्क और भावनाओं से जुड़ी किसी भी चीज की तरह, इसके बारे में पक्के तौर पर कह पाना मुश्किल है लेकिन इसका कुछ संबंध विकास से और कुछ हद तक किशोरावस्था के वर्षों में होने वाले प्रमुख तंत्रिका संबंधी बदलावों से हो सकता है।
बदलते हार्मोन मस्तिष्क के भावनात्मक केंद्र कहे जाने वाले ‘लिम्बिक’ सिस्टम’ को अत्यधिक सक्रिय कर देते हैं। इससे किशोर भावनात्मक रूप से संवेदनशील हो जाते हैं और उनमें तीव्र मनोदशा परिवर्तन देखे जा सकते हैं।
साथ ही, हम अपने माता-पिता पर कम निर्भर होने लगते हैं।
यह बढ़ता स्वावलंबन अपने साथियों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की जरूरत को बढ़ा देता है। हमें बहुत जल्दी दूसरों के जज्बातों को समझना सीखना होगा और सुरक्षित या असुरक्षित चीजों की गहरी यादें विकसित करनी होंगी।
एक प्रागैतिहासिक किशोर की दुनिया की कल्पना कीजिए। अब वह बच्चा संपूर्ण रूप से माता-पिता पर आश्रित नहीं है, बल्कि नए क्षेत्रों की खोज करने और अपने दम पर आगे बढ़ने की सहज इच्छा रखता है।
अपने परिवार के संरक्षण से दूर, अब उसका अस्तित्व साथियों के साथ संबंधों पर निर्भर करता है।
अकेले आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं। एक समूह का हिस्सा होना ही जीने-मरने का सवाल बन जाता है।
किशोर को एक नया समूह मिलता है, जो शरीर की भाषा या गैर-भाषाई मौखिक अभिव्यक्तियों का उपयोग करके एक-दूसरे को महत्वपूर्ण जानकारी देता है। आवाज की तीव्रता (पिच) या बोलने की गति में बदलाव, तात्कालिकता या उत्तेजना का संकेत देते हैं।
भावना जितनी प्रबल होगी, स्मृति उतनी ही गहरी होगी।
प्रबल भावनात्मक प्रतिक्रियाएं जैसे खतरे का डर, सफल शिकार का रोमांच, संभावित साथी के साथ गहरा जुड़ाव, यह सुनिश्चित करती है कि किससे डरना है और किसकी तलाश करनी है, इसकी यादें इस किशोर मस्तिष्क में गहराई से अंकित हो जाती हैं।
भावना जितनी प्रबल होगी, स्मृति उतनी ही गहरी होगी।
आधुनिक किशोरों का मस्तिष्क भी इससे बहुत अलग नहीं है।
आज की दुनिया में, हमें शायद ही कभी भोजन की तलाश में शिकार करने या हमें खाने की कोशिश कर रहे शिकारियों से खुद को बचाने की ज़रूरत पड़ती है लेकिन आधुनिक किशोरों का दिमाग अभी भी तेजी से और सहज रूप से प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार है।
आधुनिक किशोर अब भी परिवार के घेरे की सुरक्षा से दूर, किशोर रिश्तों की विश्वासघाती दुनिया में आगे बढ़ना सीखेंगे।
जैसा कि हम सभी जानते हैं और अक्सर तीव्र व्यक्तिगत अनुभवों से पता चलता है, किशोर मस्तिष्क गैर-भाषाई सामाजिक संकेतों के प्रति बहुत संवेदनशील होता है, जो समूह द्वारा स्वीकृति या अस्वीकृति दर्शाते हैं।
हम विकासवादी रूप से अपने मस्तिष्क में उन घटनाओं की गहरी यादें संजोने के लिए तैयार होते हैं जिनका हम पर गहरा भावनात्मक प्रभाव पड़ा हो।
तो इसका किशोरों की संगीत की पसंद से क्या लेना-देना है? संगीत भाषाई और गैर-भाषाई भावनाओं को व्यक्त कर सकता है।
गीत ऐसी कहानी कह सकते हैं जिससे हमें लगता है कि हमारी बात सुनी और समझी जा रही है। ये संकेत देते हैं कि हम कलाकार के साथ, अन्य प्रशंसकों के साथ, और प्रेम, वासना या अकेलेपन जैसे व्यापक मानवीय अनुभवों के साथ जुड़े हुए हैं।
राग और लय भी भावनाएं व्यक्त करते हैं।
वास्तव में, कुछ विद्वानों का मानना है कि संगीत के अस्तित्व का मूल कारण वाणी के गैर-भाषाई तत्वों से जुड़ा है, जिनका उपयोग हमारे प्रागैतिहासिक पूर्वजों ने बोली जाने वाली भाषा के विकास से पहले संवाद करने के लिए किया होगा।
संगीत जिस तरह से भावनाएं व्यक्त करता है और उन्हें जगाता है, वही इसे जीवन में, खासकर किशोरावस्था में, इतना महत्वपूर्ण बनाता है।
किशोर प्रतिदिन कई घंटे संगीत सुनने में बिता सकते हैं, खासकर जब वे मनोवैज्ञानिक संकट के दौर से गुजर रहे हों।
इस दौर में, जब भावनात्मक अनुभव और उनसे मिलने वाली सीख जीवन में जरूरी होती है, संगीत एक शक्तिशाली माध्यम बन जाता है।
दूसरे शब्दों में किशोरावस्था में सुना गया संगीत उस दौर की प्रबल भावनाओं से गहराई से जुड़ जाता है।
नई शुरुआतों का समय
किशोरावस्था का संगीत शायद आपके पहले चुंबन का साक्षी रहा हो, वह धुन रही हो जिसे दोस्तों के साथ मिलकर गाया गया, या फिर वह सहारा बना हो जब दिल पहली बार टूटा था।
प्रकृति ने हमें इस तरह गढ़ा है कि किशोरावस्था के हर क्षण को गहराई से महसूस करें ताकि हम जरूरी सबक सीख सकें, जैसे जीवन में कैसे टिके रहना है, स्वतंत्र कैसे बनना है और दूसरों से कैसे जुड़ना है।
इसी के साथ, हो सकता है कि संगीत हमारे मस्तिष्क के उस आदिम हिस्से को भी छूता हो जो भाषा से पहले का है।
युवावस्था के वे तनावपूर्ण और अहम क्षण जिनके साथ संगीत जुड़ा था, वे शक्तिशाली भावनाओं के साथ हमारे मस्तिष्क में गहराई से अंकित हो जाते हैं।
इसीलिए, जिंदगी भर वे गीत हमारे लिए एक तरह की ‘संगीतीय चाबी’ की तरह काम करते हैं, जो हमें हमारे बीते संसार के द्वार तक ले जाती है।
(द कन्वरसेशन) सुमित नरेश
नरेश