जब भी हम अतीत को पुनः बताते हैं तो वह थोड़ा बदल जाता है। अब बताते- बताते कितना बदल जाए, इसका अहसास हमें भी नहीं होता, और जब अहसास होता है तो वह इतिहास विवाद में बदल जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ है, राजस्थान के इतिहास के साथ। इस बार मुद्दा अकबर बनाम महाराणा प्रताप का नहीं है, बल्कि मराठा बनाम राजपूत का हो चला है।
मराठा साम्राज्य का क्षेत्र पश्चिम, दक्षिण और मध्य भारत में बहुत बड़ा था। राजस्थान के कुछ इलाकों में मराठा सैन्य या आर्थिक प्रभाव सीमित समय के लिए रहा, लेकिन स्थायी/प्रत्यक्ष सीमा विस्तार या नियंत्रण उन्हें कभी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हुआ, यह कई राजस्थान के इतिहासकारों का मत है।
NCERT की किताब में 8वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम में राजस्थान को मराठा साम्राज्य के नक्शे में बताए जाने के बाद मारवाड़ से लेकर मेवाड़ और जयपुर तक, आग जबरदस्त फैली है। पार्टी से लेकर विपक्षी नेताओं तक, राजस्थान के तमाम जनप्रतिनिधियों ने इस पर आपत्ति जाहिर की है।
मराठा साम्राज्य के नक्शे में राजस्थान हटाया
जिसके बाद एनसीईआरटी ने समीक्षा समिति भी बना दी है, लेकिन क्या यह केंद्र की भाजपा सरकार के लिए इतना आसान मुद्दा है? क्योंकि पार्टी के अंदरखाने इस बात की भी आशंका है कि अगर मराठा साम्राज्य के नक्शे में राजस्थान हटाया तो क्या महाराष्ट्र में इतिहास से छेड़छाड़ के स्वर को पार्टी संभाल पाएगी? बरहाल, राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी इतिहास के इस भंवरजाल में बुरी तरह फंसी है।
राजस्थान में मराठा
दरअसल, मराठा साम्राज्य के प्रभाव क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के बड़े हिस्से, उत्तर में पंजाब और पूर्व में बंगाल तक शामिल थे। एक अनुमान के अनुसार इसका क्षेत्रफल लगभग 28 लाख वर्ग किमी था। इतिहासकारों के अनुसार राजस्थान में मराठा प्रभाव था, कई रियासतों से चौथ/खिराज (एक तरह का टैक्स) लिया जाता था और अनेक संधियां/मध्यस्थताएं हुईं।
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हालांकि संपूर्ण राजपुताना का दीर्घकालीन प्रत्यक्ष “विलय” मराठा राज्य में नहीं माना जाता। जबकि मराठा साम्राज्य पर बात करने वाले इतिहासकार कहते हैं कि अपने चरम पर (18वीं सदी के मध्य) मराठा साम्राज्य दक्षिण में तमिलनाडु से लेकर उत्तर में पेशावर (अब पाकिस्तान) और पूर्व में बंगाल तक फैला हुआ था।
मराठा साम्राज्य का प्रभाव
मराठा साम्राज्य का प्रभाव मुख्यतः 18वीं सदी के मध्य से शुरु हुआ, जब मराठाओं ने मालवा, गुजरात और बुंदेलखंड में अपना प्रभाव मजबूत कर लिया था. इसके बाद राजस्थान की प्रमुख रियासतों के संग भी उनका संपर्क और संघर्ष हुआ। राजस्थान में मराठों के प्रभाव पर इतिहासकारों का यह भी कहना है कि मराठाओं ने राजस्थान के कुछ क्षेत्रों (जैसे मेवाड़, बूंदी, जयपुर, जैसलमेर आदि) में कभी-कभार सैन्य छापेमारी, चौथ (कर) वसूली, राजनीतिक दबाव या अस्थायी नियंत्रण स्थापित किया, लेकिन वहां पर उनका प्रत्यक्ष ‘प्रशासनिक नियंत्रण’ नहीं था।
अधिकांश इतिहासकारों, स्थानीय रियासतों और वर्तमान राजपरिवारों के अनुसार, राजस्थान की रियासतें (बीकानेर, जयपुर, मेवाड़, मारवाड़, जैसलमेर आदि) स्वतंत्र बनी रहीं और मराठों का प्रभाव सीमित और अस्थायी था। लेकिन कुछ आधुनिक नक्शों में राजस्थान के क्षेत्रों को मराठा साम्राज्य के ‘प्रभाव क्षेत्र’ के रूप में अवश्य दर्शाया गया है, जिससे हाल ही में विवाद भी हुआ है। इतिहासकार इसे भ्रामक मानते हैं।
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